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जानिए पूजा में कलश की स्थापन किस लिए की जाती है

 

हिन्दू धर्म में पूजा या किसी धार्मिक अनुष्ठान में सामग्री के साथ ही साथ कई सारी वस्तुओ का प्रयोग किया जाती हैं। जैसे कि पानी फूल दीपक घंटी,शंख आसन कलश आदि जिनका खास ही महत्व होता हैं। भारतीय संस्कृति में किसी अनुष्ठान में कलश की स्थापना की जाती हैं।

किसी भी पूजा,त्योहार,संस्कार में सबसे पहले कलश स्थापना और पूजन के बिना कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं किया जाता हैं। कलश को समस्त ब्रह्मण्ड का प्रतीक माना जाता हैं। क्योंकि ब्रह्राण्ड का आकार भी घट के सामान ही होता हैं। घट में समस्त सृष्टि का समावेश हैं। इसमें सभी देवी-देवता नदी, पर्वत,तीर्थ आदि मौजूद रहता हैं।

कलश स्थापना का एक विधान हैं। इसे पूजा स्थल पर ईशान कोण में ही स्थापित किया जानाी चाहिए। प्राय कलश तांबे का ही माना हैं। अगर यह अपलब्ध नहीं हो तो आप मिट्टी के कलश का भी प्रयोग कर सकते हैं। वही शास्त्रों में कलश कितना बड़ा अथवा कितना छोटा हो इसके बारे में भी बताया गया हैं। मध्य में पचास अंगुल चौड़ा,सोलह अंगुल ऊंचा,नीचे बारह अंगुल चौड़ा और ऊपर से आठ अंगुल का मुह हो कलश अच्छा माना जाता हैं।

वही आमतौर पर कलश को पानी से भी भरा जाता हैं। मगर विशेष प्रयोजन में किये जाने वाले अनुष्ठानों में विशेष वस्तुएं रखे जाने का भी विधान होता हैं। अगर धर्म के लाभ के लिए अनुष्ठान किया जा रहा हो तो फिर कलश में जल के स्थान में भस्म का प्रयोग होता हैं। वही धन के लाभ हेतु मोती और कमल का इस्तेमाल किया जाता हैं। कलश को भूमि पर नहीं रखना चाहिए। इसको रखने से पहले भूमि को शुद्ध करना बहुत ही आवश्यक होता हैं। फिर उसके बाद घंटार्गल यन्त्र बनाना चाहिए।