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जानिए क्यों सूर्य को देख कर दिशा नहीं तय करनी चाहिए

 

घर की छत पर खड़े होकर रोज़ ​ही सूर्योदय देखते रहने से पता चलता हैं,कि सूर्य भी अपना स्थान बदलता रहता हैं। अक्सर ऐसा देखा गया हैं,कि लोग दिशाओं का निर्धारण सूर्य से करते हैं। जिस दिशा से सूर्य उदय होता हैं,उसे पूरब मानकर चारों कोण और दिशाएं निश्चित कर लेते हैं,पर हमें यह ज्ञात होना चाहिए। कि सूर्य उत्तरायण और दक्षिणायण हुआ करते हैं।

वही मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण और कर्क संक्रांति के बाद दक्षिणायण होते हैं। अगर आप अपनी छत पर खड़े होकर प्रतिदिन सूर्योदय देखते हैं,तोआपको मालूम होगा कि सूर्य के उदय का स्थान बदलता रहता हैं। इसलिए सूर्य उदय के स्थानपर ही ठीक पूरब दिशा मान लेना उचित नहीं होगा। क्योंकि सूर्य उदय का स्थान निश्चित नहीं हैं। यह उत्तर या दक्षिण की ओर अयन के आधार पर खिसकता रहता हैं। वही इस आधार पर दिशा निर्धारण करना ​उचित नहीं हैं। क्योकि उसके निर्धारण के लिए एक स्थिर बिंदु चाहिए।

ये तो सभी लोग जानते हैं,कि उत्तर की ओर से चुंबकीय तरंगों का प्रवाह सतत दक्षिण की ओर बहा करता हैं। वास्तु में इसलिए उत्तर दिशा को कुबेर का स्थान कहते हैं। क्योकि इसी ओर से सदा तरंगों का आबाद आगमन होता हैं। इन तरंगों के उचित प्रयोग के सिद्धांत ही वास्तु शास्त्र के मूल आधार हैं। उत्तर जीवन की दिशा हैं। स्थायित्व की दशा हैं। हमारे ऋषियों ने उत्तर को कुबेर और दक्षिण को यम की दिशा बताया गया हैं। उत्तर को जीवन और दक्षिण को मृत्यु या उत्तर को आगमन और दक्षिण को निगमन की दिशा बताया हैं।