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Skanda shashti vrat 2021: काम, क्रोध और अहंकार से मुक्ति दिलाता है यह व्रत, जानिए महत्व

 

हर मास की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत किया जाता हैं इस दिन व्रत रखने से संतान के कष्ट दूर हो जाते हैं और जातक में पायी जानते वाली तामसिक प्रवृत्तियों का भी नाश हो जाता हैं तो आज हम आपको स्कंद षष्ठी व्रत की महिमा और महत्व बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।

स्कंद षष्ठी व्रत भगवान शिव और देवी मां पार्वती के पुत्र स्कंद को समर्पित होने के कारण स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं जैसे श्री गणेश के लिए महीने की चतुर्थी के दिन पूजा पाठ किया जाता हैं उसी तरह उनके बड़े भाई कार्तिकेय या स्कंद के लिए महीने की षष्ठी के लिए व्रत किया जाता हैं उत्तर भारत में कार्तिकेय को श्री गणेश का बड़ा भाई माना जाता हैं मगर दक्षिण भारत में कार्तिकेय श्री गणेश के छोटे भाई माने जाते हैं इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनाई जाती हैं षष्ठी तिथि कार्तिकेय की होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा गया हैं दक्षिण भारत के साथ उत्तर भारत में भी यह पर्व हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता हैं संतान के कष्टों को कम करने और अपने आस पास की नकारात्मक शक्ति की समाप्ति में यह व्रत लाभकारी होता हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक स्कंद षष्ठी के कारण प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के तेज से पैदा हुए स्कंद को 6 कृतिकाओं ने अपना दूध पिला कर पाला था। साथ ही स्कंद की उत्पत्ति अमावस्या की आग से हुई थी। दक्षिण भारत में स्कंद मुरूगन के नाम से प्रसिद्ध हैं स्कंदपुराण के उपदेष्टा कार्तिकेय भगवान हैं। यह पुराण और पुराणों में सर्वश्रेष्ठ माना गया हैं कार्तिके को देवताओं ने सेनापति बनाया था और उन्होंने तारकासुर का वध किया था।