"Shardiya Navratri 2025" क्यों अष्टमी या नवमी के दिन ही करते हैं कन्या पूजन? जानें इसका धार्मिक महत्व
नवरात्रि के दिनों में अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं का पूजन करने की प्रथा अधिक प्रचलित है। नौ कन्याओं के साथ, एक छोटे बालक को भी विधिपूर्वक स्नान कराकर, तिलक लगाकर पूजन किया जाता है और सात्विक भोजन कराया जाता है। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के लिए इस परंपरा का आध्यात्मिक अर्थ अवश्य समझना चाहिए। इन नौ कन्याओं की पूजा माँ दुर्गा के नौ रूपों और दिव्य गुणों के स्वरूप के रूप में की जाती है। क्योंकि, छोटे बालक और बालिकाएँ स्वभाव से शुद्ध, भोले, सरल और मासूम होते हैं, जो निराकार भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। और यह भी सर्वविदित है कि जिन अष्टभुजा देवियों की हम नवरात्रि के नौ दिनों तक पूजा करते हैं, उन सभी के दिव्य ज्ञान, गुणों और शक्तियों का स्रोत स्वयं भगवान शिव हैं, इसीलिए सभी देवियों को शिव की शक्ति शिवशक्ति कहा जाता है।
कन्याओं का पूजन
अब इन छोटी कन्याओं का पूजन करने का तात्पर्य यह है कि वास्तव में नौ कन्याओं के पूजन की विधि केवल पूजा-पाठ या चंदन-तिलक अभिषेक तक सीमित न रहे, बल्कि उन कन्याओं और नन्हीं बालिकाओं में पवित्रता, दिव्यता, सरलता, सहजता या सहजता जैसे दिव्य गुण विद्यमान हों, ताकि हम भी सदाशिव और शिव शक्ति के रूप में देवी दुर्गा की कृपा या आशीर्वाद के पात्र बन सकें। नौ कन्याओं का पूजन हमें यह भी बोध कराता है कि नवरात्रि के दिनों में हमें सबसे अधिक गुण ग्रहण करने हैं, देवियों से भी और देवतुल्य बालकों से लेकर वृद्धों तक, सभी में विद्यमान गुणों को देखना और अपनाना है।
शक्तियों का आह्वान
अब विचार करें कि हम किसका आवाहन कर रहे हैं। हम उसे शक्ति भी कहते हैं, हम उसे माता भी कहते हैं, हम उसे अस्त्र-शस्त्रों के साथ दिखाते हैं और हम उसके चरणों में राक्षसों को दिखाते हैं। इन सबका क्या अर्थ है? चित्र का देवी का चित्र अर फाटस में आसुर, तो क्या देवी हिंसा करती थीं? इसके पीछे क्या अर्थ है? जिन शक्तियों का आह्वान किया जा रहा है, वे कौन हैं और वे कहाँ से आ रही हैं? इस पर विचार करें।
वास्तव में, पवित्रता आत्मा का एक व्यक्तिगत गुण है, जिसे हम सब भूल चुके हैं, क्योंकि हमारे अंदर के दुर्गुण, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि। मनोरोगियों को हम राक्षस के रूप में, और देवियों के चरणों में दर्शाते हैं।
अंदर की राक्षसी प्रवृत्ति
वे भौतिक रूप में राक्षस नहीं हैं, बल्कि हमारे अंदर की राक्षसी प्रवृत्तियाँ हैं। नकारात्मकता, दुर्बलता और गलत आदतों को दर्शाती हैं। हमें पता ही नहीं चलता कि हमने अपने अंदर के राक्षसों को जगा दिया है। अब हमें अपनी आंतरिक दिव्य शक्ति या देवत्व को जगाना है। जैसे ही हमारे अंदर का देवत्व जागृत होगा, दुर्गुण स्वतः ही गायब हो जाएँगे। इसलिए देवियों का आह्वान करने का अर्थ है भीतर के देवत्व को जगाना और भीतर के दुष्ट राक्षसी स्वभाव का नाश करना। देवत्व और राक्षसत्व दोनों ही हमारे भीतर हैं।
अष्टशक्तियों वाली दिव्य आत्मा
दूसरा, देवी को अष्टभाधारी कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम जीवन में अपनी आत्मशक्ति का प्रयोग ज्ञानरूपी अस्त्र से करेंगे, तो हम दिव्य बन जाएँगे। दिव्यता जागृत होगी, तब अष्टशक्तियों वाली दिव्य आत्मा प्रकट होगी। वास्तव में, हमारी आत्मा में ही ये आठ शक्तियाँ समाहित हैं, जैसे सहने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, परीक्षा लेने की शक्ति, निर्णय लेने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति आदि। लेकिन हम अक्सर कहते हैं कि मुझमें शक्ति नहीं है, मुझमें सहन करने की शक्ति नहीं है, मैं सबके साथ तालमेल नहीं बिठा सकता। ऐसा कहकर हम स्वयं को कमज़ोर कर लेते हैं।
इन नौ दिनों में हम सबसे पहले शक्तियों का आह्वान करने के लिए जागते हैं। क्योंकि जागृति का अर्थ है अज्ञान की निद्रा से जागना। जब अज्ञान का अंधकार इस युग की सृष्टि और मानव मन को ढँक लेता है, तब आत्म-जागृति की आवश्यकता होती है।