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रत्नशास्त्र: केतु के दुष्प्रभाव को तुरंत समाप्त करता है लहसुनिया

 

आपको बता दें, कि हर व्यक्ति के जीवन में ज्योतिषशास्त्र और रत्नशास्त्र का विशेष महत्व होता हैं वही लहसुनिया केतु का रत्न माना जाता हैं अर्थात इसका स्वामी केतु ग्रह है वही संस्कृत में इसे वैदुर्य, विदुर रत्न बाल सूर्य, उर्दू फारसी में लहसुनिया और अंग्रेजी में कैट्स क आई कहते हैं जब भी बने बनाए काम में आपके अड़चन पड़े, चोट, दुर्घटना का भय बने, उन्नति के सभी मार्ग बंद हो जाते समझे केतु के कारण यह सब परेशानी चल रही हैं।

वही जन्मकुंडली के अदंर जब भी केतु आपकी परेशानी का कारण केतु बने तो लहसुनिया रत्न धारण करना लाभकारी साबित होता हैं वही केतु का रत्न लहसुनिया अचानक समस्याओं से निजात दिलाता हैं और त्वरित फायदे भी कराता हैं यह रत्न केतु के दुष्प्रभाव को शीघ्र ही समाप्त करने में सक्षम होता हैं।

जानिए लहसुनिया की पहचान—
इसमें सफेद धारियां पाई जाती हैं, जिनकी संख्या आमतौर पर दो, तीन या फिर चार हो सकती हैं। वही जिस लहसुनिया में ढाई धारी पाई जाती हैं वह उत्तम कोटि का माना जाता हैं यह सफेद, काला, पीला सूखे पत्ता सा और हरे चार प्रकार के रंगों में मिलता हैं इन सभी पर सफेद धारियां अवश्य होती हैं, ये धारियां कभी कभी धुएं के रंग की भी होती हैं यह श्रीलंका व काबुल के अलावा भारत के विंध्याचल, हिमालय और महानदी क्षेत्रों में पाई जाती हैं। वही शनिवार को चांदी की अंगूठी में लहसुनियां जड़वाकर विधिपूर्वक, उपासना जप करें फिर श्रद्धा सहित इसको अद्र्धरात्रि के समय माध्यमा या ​कनिष्ठा उंगली में धारण करें इसका वजन सवा चार रत्ती से कम नहीं होना चाहिए।