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Kartik maas 2020: इस तिथि को है देवउठनी एकादशी, तुलसी पूजा में जरूर अर्पित करें ये चीजें

 

हिंदू धर्म पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवोत्थान, देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी व देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जानते हैं इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व होता हैं इस दिन तुलसी विवाह भी आयोजित किया जाता हैं इस एकादशी पर तुलसी विवाह का सबसे अधिक महत्व होता हैं देवउठनी एकादशी को छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन लोग अपने घरों में दीपक भी जलाते हैं तो आज हम आपको इस दिन से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।

देवउठनी एकादशी पर विधि पूर्वक तुलसी विवाह का पूजन करें। तुलसी का पौधा एक चौकी पर आंगन के बीचो बीच रखा जाता हैं तुलसी को मेंहदी, मौली धागा, पुष्प, चंदन,​ सिंदूर, सुहाग के सामान की चीजें, चावल, मिठाई, पूजन सामग्री के रूप में रखी जाती हैं। शास्त्र अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार मास के लिए सो जाते हैं और एक ही बार कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं

देवउठनी एकादशी के दिन विधि विधान के साथ तुलसी विवाह का पूजन किया जाता है। तुलसी का पौधा एक चौकी पर आंगन के बीचो-बीच रखा जाता है। तुलसी जी को महंदी, मौली धागा, फूल, चंदन, सिंदूर, सुहाग के सामान की चीजें, चावल, मिठाई,पूजन सामग्री के रूप में रखी जाती है। श्री विष्णु के ये चार माह के लिए सो जाते हैं और इस दौरान सभी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं जब देव जागते हैं तभी शुभ कार्यों का शुभारंभ होता हैं इस दिन श्री विष्णु के उठने के कारण ही देव जागरण या उत्थान होने के कारण ही इसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। देवउठनी एकादशी पर पूजा स्थल में गन्नों से मंडप सजाया जाता हैं उसके नीचे ​श्री विष्णु की प्रतिमा विराजमान कर मंत्रों से विष्णु को जगाने के लिए पूजा की जाती हैं पूजा में मूली, शंकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु फल अर्पित किए जाते हैं।