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पितृपक्ष में ऐसे करें पितरों का तर्पण, जानिए सही विधि और मंत्र

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: पितृपक्ष का आरंभ हो चुका हैं इस साल पितृपक्ष 21 सितंबर से लेकर 6 अक्टूबर तक रहेगा। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म होता हैं जिसमें तर्पण प्रमुख होता हैं ज्योतिष अनुसार आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा पितरों के तर्पण की विधि, मंत्र और महत्व बता रहे हैं तो आइए जानते हैं। 

आपको बता दें कि पितृपक्ष में कोई भी व्यक्ति अपने माता पिता के अलावा दादा,परदादा, दादी, परदादी, नाना, नानी, चाचा, ताऊ, भाई बहन, बहनोई, मामा मामी, मौसा मौसी, गुरु, गुरुमाता आदि की आत्म तृप्ति के लिए तर्पण कर सकता हैं। 

जानिए पितृपक्ष में तर्पण की विधि—
आपको बता दें कि स्नान आदि क बाद आप सबसे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुशा के मोटक पर अक्षत से देव तर्पण करें। इस दौरान जनेउ बाएं कन्धे पर रखें। इसके बाद उत्तर की ओर मुख करके अपना जनेउ गले में माला की तरह धारण करें। इसके बाद कुश से पानी में जौ डालें और ऋषि मुनि तर्पण करें। अब अन्त में जनेउ दाएं कन्धे पर रख लें। फिर दक्षिण की ओर अपना मुख करें। इसके बाद बायां पैर मोड़कर कुश से पानी में काला तिल डालें और पितरों का तर्पण करें। 

जानिए तर्पण का मंत्र—
अगर आप किसी पुरुष के लिए तर्पण कर रहे हैं तो “तस्मै स्वधा” का उच्चारण कर सकते हैं वही अगर आप किसी महिला के लिए तर्पण कर रहे हैं तो “तस्यै स्वधा” का उच्चारण करें।  

अपने देव ऋषि पितर का तर्पण करने के बाद आप चाहें, तो कुल या समाज के उन लोगों के लिए भी तर्पण कर सकते हैं जिनकी कोई संतान नहीं हैं ऐसा करने से उनकी आत्म तृप्त होगी और आपको आशीष मिलेगा। इसके लिए आप एक गमछे के कोने में काला तिल लें। उसे पानी में भिगों दें। इसके बाद उसे बाईं ओर निचोड़ दें। इस दौरान इन मंत्रों का उच्चारण करें।  

“ये के चास्मत्कूले कुले जाता,

अपुत्रा गोत्रिणो मृता।

ते तृप्यन्तु मया दत्तम

वस्त्र निष्पीडनोदकम।।