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गुरुवार के दिन जरूर करें ये आरती मां लक्ष्मी हो जाएंगी प्रसन्न, मिलेगा धन लाभ का आशीर्वाद 

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की साधना आराधना को समर्पित होता है वहीं बुधवार का दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है इस दिन भक्त भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं। 

माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है लेकिन इसी के साथ ही अगर आज यानी गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा करके श्री हरि की प्रिय आरती की जाए तो माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तों को सुख समृद्धि व धन प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं विष्णु जी की प्रिय आरती। 

1. श्री विष्णु आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ॐ जय जगदीश हरे...

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

ॐ जय जगदीश हरे...

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥

ॐ जय जगदीश हरे...

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय जगदीश हरे...

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ॐ जय जगदीश हरे...

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे...

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ॐ जय जगदीश हरे...

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

स्वामी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥

ॐ जय जगदीश हरे...

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

ॐ जय जगदीश हरे...

2. बृहस्पति देव की आरती 

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगाओ, कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ, संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय वृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,जय बृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ॥