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साधु-संत और तपस्वी क्यों चुनते हैं एकांत, क्या है मौन की शक्ति 

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: ईश्वर ने सभी को वाणी यानी की बोलने की शक्ति प्रदान की है लेकिन व्यक्ति बोलना आपकी शक्ति को नष्ट करता है, ऐसे में केवल बोलने में ही नहीं बल्कि मौन रहने में भी शक्ति होती है यही कारण है कि धर्मों में मौन को अधिक महत्व दिया गया है कहते है कि मौन रहकर व्यक्ति मानसिक शांति को प्राप्त कर सकता है लेकिन अगर वह व्यर्थ बोलता है तो वह सिर्फ अपनी ऊर्जा का नष्ट करता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मौन रहने की  शक्ति के महत्व को अपने लेख द्वारा बता रहे है तो आइए जानते है। 

शास्त्रों और पुराणों में मौन को महत्वपूर्ण माना गया है मौन से विचारों में एकाग्रता और रचनात्मकता बढ़ती है इसलिए साधु संत भी मौन रहकर ही ध्यान लगाकर ईश्व की साधना करते है और संसार के गूढ़ रहस्यों व ज्ञान को प्राप्त करते है। हर व्यक्ति के जीवन में एक नहीं बल्कि बहुत सारे दुखों का कारण बोलना ही है क्योंकि मनुष्य की समस्या ही यही है कि वह चुप नहीं रह सकता है हम सभी कुछ न कुछ बोलते ही रहते है और मनुष्य के बोलने के कारण ही आधे से अधिक दुख निर्मित हो जाते है परिवार में क्लेश का कारण भी व्यक्ति का अधिक बोलना ही होता है।

हर व्यक्ति की प्रवृति ही ऐसी होती है कि वह अपने मन के भीतर चलने वाली हर बात को दूसरों तक पहुंचाना चाहता है और दूसरा भी आपके साथ वैसा ही करता है ये बाते किसी अन्य या तीसरे किसी और से संबंधित हो तो ये काम और भी दिलचस्पी लेकर किया जाता है। ये सुनने सुनने का माहौल पूरी जिंदगी चलता रहता है और इस तरह से व्यक्ति अपना समय, जीवन, सोच समझ और कीमती पल भी खो देता है जिसमें वह खुशी के पल जी सकता था। यही कारण है कि इस सुनने और सुनाने के माहौल से मनुष्य को बाहर निकलना चाहिए। 

आध्यात्मिक तौर पर अगर देखा जाए तो मनुष्य जब तक बाहर की ओर बोलता रहेंगा, तब तक उसके मन के भीतर अशांति रहेगी। जिस दिन वह मन से चुप हो जाएंगा तो तब बाहर हमारे मुख से कुछ भी निकले हम शांत ही रहेंगे। व्यक्ति के जीवन की हर परेशानी और दुख का कारण उसका खुद का बोलना है कोई भी चुप रहना नहीं चाहता है सभी सुना देना चाहते है लेकिन व्यक्ति बोलने से शक्ति नष्ट हो जाती है ऐसे में मनुष्य को मौन रहने की शक्ति का अभास भी नहीं होता है।