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हर तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए करें हरिद्रा गणेश कवचम् का पाठ

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिनों को किसी न किसी देवी देवता की पूजा आराधना के लिए विशेष माना जाता है वही बुधवार का दिन गौरी पुत्र श्री गणेश की आराधना को समर्पित है इस दिन श्री गणेश भगवान की पूजा अर्चना करना श्रेष्ठ माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन भक्त भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और उपवास भी रखते हैं इस दिन पूजा के बाद हरिद्रा गणेश कवचम् का पाठ करना भी लाभकारी होता है

माता के दशों महाविद्याओं रूपों के अलग अलग भैरव और गणेश हैं बगलामुखी माता के गणेश श्री हरिद्रा गणेश है हरिद्रा गणेश की पूजा, अपने शत्रु को परिवर्तित कर उसे वशीभूत करने हेतु प्रसन्न किया जाता है और हरिद्रा गणेश की पूजा माता बगलामुखी की साधना के साथ ही की जाती है, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं हरिद्रा गणेश कवचम्। 

॥ अथ हरिद्रा गणेश कवच ॥

ईश्वरउवाच:
शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥१॥

अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ २॥

ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ ३॥

गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ ४॥

जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ ५॥

गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ ६॥

गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ ७॥

व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।
जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ ८॥

हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ ९॥

कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥

सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥

ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ १२॥

धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ १३॥

हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ १४॥
॥ इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥