विशेष कामना पूर्ति के लिए गुरुवार को करें विष्णु पञ्जर स्तोत्र का पाठ
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन श्री हरि विष्णु को समर्पित है इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है और उपवास भी रखा जाता है गुरुवार के दिन विष्णु पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ पूजा आराधना करते हैं इस दिन अगर सच्चे मन से विष्णु पञ्जर स्तोत्र पाठ किया जाए तो भगवान की कृपा से भक्तों की विशेष कामना पूरी हो जाती है
आपको बता दें कि विष्णु पञ्जर स्तोत्र का पाठ नियम अनुसार करना चाहिए इसका पाठ करने से पहले भक्तों को स्नान करना चाहिए इसके बाद साफ सुथरा हो कर पीले रंग के वस्त्रों को धारण करके भगवान श्री हरि का ध्यान करते हुए विष्णु पञ्जर स्तोत्र का पाठ आरंभ करना चाहिए इसके बाद पाठ पूरा होने पर अपनी गलतियों के लिए क्षमा जरूर मांग लें।
विष्णु पञ्जर स्तोत्र—
॥ हरिरुवाच ॥
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम् ।
नमोनमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम् ॥ १॥
प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
गदां कौमोदकीं गृह्ण पद्मनाभ नमोऽस्त ते ॥ २॥
याम्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
हलमादाय सौनन्दे नमस्ते पुरुषोत्तम ॥ ३॥
प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो ! त्वामह शरणं गतः ।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम् ॥ ४॥
उत्तरस्यां जगन्नाथ ! भवन्तं शरणं गतः ।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे ! ॥ ५॥
नमस्ते रक्ष रक्षोघ्न ! ऐशान्यां शरणं गतः ।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम् ॥ ६॥
प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्न्येय्यां रक्ष सूकर ।
चन्द्रसूर्यं समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा ॥ ७॥
नैरृत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन् ।
वैजयन्तीं सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम् ॥ ८॥
वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोऽस्तु ते ।
वैनतेयं समारुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन ! ॥ ९॥
मां रक्षस्वाजित सदा नमस्तेऽस्त्वपराजित ।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां त्वं रसातले ॥ १०॥
अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोऽस्तु ते ।
करशीर्षाद्यङ्गुलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम् ॥ ११॥
कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम ।
एतदुक्तं शङ्कराय वैष्णवं पञ्जरं महत् ॥ १२॥
पुरा रक्षार्थमीशान्याः कात्यायन्या वृषध्वज ।
नाशायामास सा येन चामरान्महिषासुरम् ॥ १३॥
दानवं रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान् ।
एतज्जपन्नरो भक्त्या शत्रून्विजयते सदा ॥ १४॥
इति श्रीगारुडे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे
विष्णुपञ्जरस्तोत्रं नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥