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शनिवार के दिन करें शनि स्तोत्र का पाठ, करियर में आने वाली बाधाएं होंगी दूर

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा आराधना को समर्पित किया गया है वही शनिवार का दिन शनि महाराज की आराधना के लिए खास होता है इस दिन शनि देव की पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन विधिवत पूजा करते हैं और उपवास भी रखते हैं

मान्यता है कि शनि कृपा जिस पर होती है उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती है ऐसे में अगर आप भी शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शनिवार के दिन श्री शनि स्तोत्र का पाठ करें इसका पाठ करियर में आने वाली बाधाएं दूर करेंगा और जीवन में सुख शांति व समृद्धि प्रदान करेगा, तो आज हम आपके लिए लेकर आए है शनि स्तोत्र का पाठ। 

श्री शनि स्तोत्र पाठ-

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
त्म्।क् डव्त्म्
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

दशरथकृत शनि स्तोत्ररू
नमरू कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नमरू कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमरू ॥1॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥

नमरू पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नमरू ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमरू ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥

अधोदृष्टेरू नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥

तपसा दग्ध.देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमरू ॥7॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज.सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध.विद्याधरोरगारू ।
त्वया विलोकितारू सर्वे नाशं यान्ति समूलतरू ॥9॥

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलरू ॥10॥

दशरथ उवाचरू
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति.पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

हे श्यामवर्णवालेए हे नील कण्ठ वाले।
कालाग्नि रूप वालेए हल्के शरीर वाले॥
स्वीकारो नमन मेरेए शनिदेव हम तुम्हारे।
सच्चे सुकर्म वाले हैंए मन से हो तुम हमारे॥
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥

हे दाढ़ी.मूछों वालेए लम्बी जटायें पाले।
हे दीर्घ नेत्र वालेए शुष्कोदरा निराले॥
भय आकृति तुम्हारीए सब पापियों को मारे।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥

हे पुष्ट देहधारीए स्थूल.रोम वाले।
कोटर सुनेत्र वालेए हे बज्र देह वाले॥
तुम ही सुयश दिलातेए सौभाग्य के सितारे।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥

हे घोर रौद्र रूपाए भीषण कपालि भूपा।
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥
हे भक्तों के सहारेए शनि! सब हवाले तेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

हे सूर्य.सुत तपस्वीए भास्कर के भय मनस्वी।
हे अधो दृष्टि वालेए हे विश्वमय यशस्वी॥
विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
स्वीकारो नमन मेरे। हे पूज्य देव मेरे॥

अतितेज खड्गधारीए हे मन्दगति सुप्यारी।
तप.दग्ध.देहधारीए नित योगरत अपारी॥
संकट विकट हटा देए हे महातेज वाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

नितप्रियसुधा में रत होए अतृप्ति में निरत हो।
हो पूज्यतम जगत मेंए अत्यंत करुणा नत हो॥
हे ज्ञान नेत्र वालेए पावन प्रकाश वाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

जिस पर प्रसन्न दृष्टिए वैभव सुयश की वृष्टि।
वह जग का राज्य पायेए सम्राट तक कहाये॥
उत्तम स्वभाव वालेए तुमसे तिमिर उजाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

हो वक्र दृष्टि जिसपैए तत्क्षण विनष्ट होता।
मिट जाती राज्यसत्ताए हो के भिखारी रोता॥
डूबे न भक्त.नैय्या पतवार दे बचा ले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

हो मूलनाश उनकाए दुर्बुद्धि होती जिन पर।
हो देव असुर मानवए हो सिद्ध या विद्याधर॥
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥

होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै॥
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।
स्वीकारो नमन मेरे। हैं पूज्य चरण तेरे॥