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मंगलवार को करें हनुमानाष्टक का पाठ, दूर हो जाएंगे सभी संकट

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा आराधना को समर्पित है वही मंगलवार का दिन पवनपुत्र श्री हनुमान की पूजा आराधना के लिए बेहद ही खास माना जाता है इस दिन भक्त भगवान हनुमान को प्रसन्न करने के लिए विधिवत पूजा करते हैं और उपवास भी रखते हैं

ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन अगर पूरी निष्ठा और भाव के साथ भगवान हनुमान जी की पूजा उपवास किया जाए साथ ही हनुमानाष्टक का पाठ किया जाए तो भगवान हनुमान प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं भक्तों के जीवन में आने वाले सभी संकट भी दूर हो जाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए है हनुमानाष्टक का संपूर्ण पाठ, तो आइए जानते हैं। 

श्री हनुमानाष्टक पाठ-

बाल समय रवि भक्षी लियो तबए
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग कोए
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तबए
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपिए
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरिए
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तबए
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभुए
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अंगद के संग लेन गए सियए
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जुए
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तबए
लाए सिया.सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

रावण त्रास दई सिय को सबए
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभुए
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सुए
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

बान लाग्यो उर लछिमन के तबए
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेतए
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तबए
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

रावन जुध अजान कियो तबए
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दलए
मोह भयो यह संकट भारो प्
आनि खगेस तबै हनुमान जुए
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

बंधू समेत जबै अहिरावनए
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलिए
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब हीए
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

काज किये बड़ देवन के तुमए
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब कोए
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभुए
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसेए
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलनए
जय जय जय कपि सूर ॥