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गरीबी से चाहते हैं छुटकारा, तो आज करें शिव अमृतवाणी का पाठ

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म का पवित्र महीना सावन चल रहा है और आज यानी 8 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार व्रत किया जा रहा है इस दिन भक्त भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास भी रखते हैं ऐसा कहा जाता है कि सावन सोमवार के दिन विधि विधान से भोलेनाथ की पूजा करने से भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त होती है

अगर आप भी भोलेबाबा की कृपा और आशीर्वाद पाना चाहते हैं वह गरीबी से छुटकारा चाहते हैं तो ऐसे में आप आज पूजा पाठ के साथ साथ शिव अमृतवाणी का पाठ जरूर करें ऐसा करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए है शिव अमृतवाणी का संपूर्ण पाठ।  

शिव अमृतवाणी-

॥ भाग १ ॥
कल्पतरु पुन्यातामाए
प्रेम सुधा शिव नाम
हितकारक संजीवनीए
शिव चिंतन अविराम
पतिक पावन जैसे मधुरए
शिव रसन के घोलक
भक्ति के हंसा ही चुगेए
मोती ये अनमोल
जैसे तनिक सुहागाए
सोने को चमकाए
शिव सुमिरन से आत्माए
अद्भुत निखरी जाये
जैसे चन्दन वृक्ष कोए
डसते नहीं है नाग
शिव भक्तो के चोले कोए
कभी लगे न दाग
ॐ नमः शिवायए ॐ नमः शिवाय !

दयानिधि भूतेश्वरए
शिव है चतुर सुजान
कण कण भीतर है बसेए
नील कंठ भगवान
चंद्रचूड के त्रिनेत्रए
उमा पति विश्वास
शरणागत के ये सदाए
काटे सकल क्लेश
शिव द्वारे प्रपंच काए
चल नहीं सकता खेल
आग और पानी काए
जैसे होता नहीं है मेल
भय भंजन नटराज हैए
डमरू वाले नाथ
शिव का वंधन जो करेए
शिव है उनके साथ

ॐ नमः शिवायए ॐ नमः शिवाय !

लाखो अश्वमेध होए
सौ गंगा स्नान
इनसे उत्तम है कहीए
शिव चरणों का ध्यान
अलख निरंजन नाद सेए
उपजे आत्मज्ञान
भटके को रास्ता मिलेए
मुश्किल हो आसान
अमर गुणों की खान हैए
चित शुद्धि शिव जाप
सत्संगति में बैठ करए
करलो पश्चाताप
लिंगेश्वर के मनन सेए
सिद्ध हो जाते काज
नमः शिवाय रटता जाए
शिव रखेंगे लाज

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय !

शिव चरणों को छूने सेए
तन मन पावन होये
शिव के रूप अनूप कीए
समता करे न कोई
महाबलि महादेव हैए
महाप्रभु महाकाल
असुराणखण्डन भक्त कीए
पीड़ा हरे तत्काल
सर्व व्यापी शिव भोलाए
धर्म रूप सुख काज
अमर अनंता भगवंताए
जग के पालन हार
शिव करता संसार केए
शिव सृष्टि के मूल
रोम रोम शिव रमने दोए
शिव न जईओ भूल

ॐ नमः शिवायए ॐ नमः शिवाय !

॥ भाग २ . ३ ॥
शिव अमृत की पावन धाराए
धो देती हर कष्ट हमारा
शिव का काज सदा सुखदायीए
शिव के बिन है कौन सहायी
शिव की निसदिन कीजो भक्तिए
देंगे शिव हर भय से मुक्ति
माथे धरो शिव नाम की धुलीए
टूट जायेगी यम कि सूली
शिव का साधक दुःख ना मानेए
शिव को हरपल सम्मुख जाने
सौंप दी जिसने शिव को डोरए
लूटे ना उसको पांचो चोर
शिव सागर में जो जन डूबेए
संकट से वो हंस के जूझे
शिव है जिनके संगी साथीए
उन्हें ना विपदा कभी सताती
शिव भक्तन का पकडे हाथए
शिव संतन के सदा ही साथ
शिव ने है बृह्माण्ड रचायाए
तीनो लोक है शिव कि माया
जिन पे शिव की करुणा होतीए
वो कंकड़ बन जाते मोती
शिव संग तान प्रेम की जोड़ोए
शिव के चरण कभी ना छोडो
शिव में मनवा मन को रंग लेए
शिव मस्तक की रेखा बदले
शिव हर जन की नस.नस जानेए
बुरा भला वो सब पहचाने
अजर अमर है शिव अविनाशीए
शिव पूजन से कटे चौरासी
यहाँ.वहाँ शिव सर्व व्यापकए
शिव की दया के बनिये याचक
शिव को दीजो सच्ची निष्ठाए
होने न देना शिव को रुष्टा
शिव है श्रद्धा के ही भूखेए
भोग लगे चाहे रूखे.सूखे
भावना शिव को बस में करतीए
प्रीत से ही तो प्रीत है बढ़ती
शिव कहते है मन से जागोए
प्रेम करो अभिमान त्यागो

॥ दोहा ॥
दुनिया का मोह त्याग के
शिव में रहिये लीन ।
सुख.दुःख हानि.लाभ तो
शिव के ही है अधीन ॥

भस्म रमैया पार्वती वल्ल्भए
शिव फलदायक शिव है दुर्लभ
महा कौतुकी है शिव शंकरए
त्रिशूलधारी शिव अभयंकर
शिव की रचना धरती अम्बरए
देवो के स्वामी शिव है दिगंबर
काल दहन शिव रूण्डन पोषितए
होने न देते धर्म को दूषित
दुर्गापति शिव गिरिजानाथए
देते है सुखों की प्रभात
सृष्टिकर्ता त्रिपुरधारीए
शिव की महिमा कही ना जाती
दिव्य तेज के रवि है शंकरए
पूजे हम सब तभी है शंकर
शिव सम और कोई और न दानीए
शिव की भक्ति है कल्याणी
कहते मुनिवर गुणी स्थानीए
शिव की बातें शिव ही जाने
भक्तों का है शिव प्रिय हलाहलए
नेकी का रस बाटँते हर पल
सबके मनोरथ सिद्ध कर देतेए
सबकी चिंता शिव हर लेते
बम भोला अवधूत सवरूपाए
शिव दर्शन है अति अनुपा
अनुकम्पा का शिव है झरनाए
हरने वाले सबकी तृष्णा
भूतो के अधिपति है शंकरए
निर्मल मन शुभ मति है शंकर
काम के शत्रु विष के नाशकए
शिव महायोगी भय विनाशक
रूद्र रूप शिव महा तेजस्वीए
शिव के जैसा कौन तपस्वी
हिमगिरी पर्वत शिव का डेराए
शिव सम्मुख न टिके अंधेरा
लाखों सूरज की शिव ज्योतिए
शस्त्रों में शिव उपमान होती
शिव है जग के सृजन हारेए
बंधु सखा शिव इष्ट हमारे
गौ ब्राह्मण के वे हितकारीए
कोई न शिव सा पर उपकारी

॥ दोहा ॥
शिव करुणा के स्रोत है
शिव से करियो प्रीत ।
शिव ही परम पुनीत है
शिव साचे मन मीत ॥

शिव सर्पो के भूषणधारीए
पाप के भक्षण शिव त्रिपुरारी
जटाजूट शिव चंद्रशेखरए
विश्व के रक्षक कला कलेश्वर
शिव की वंदना करने वालाए
धन वैभव पा जाये निराला
कष्ट निवारक शिव की पूजाए
शिव सा दयालु और ना दूजा
पंचमुखी जब रूप दिखावेए
दानव दल में भय छा जावे
डम.डम डमरू जब भी बोलेए
चोर निशाचर का मन डोले
घोट घाट जब भंग चढ़ावेए
क्या है लीला समझ ना आवे
शिव है योगी शिव सन्यासीए
शिव ही है कैलास के वासी
शिव का दास सदा निर्भीकए
शिव के धाम बड़े रमणीक
शिव भृकुटि से भैरव जन्मेए
शिव की मूरत राखो मन में
शिव का अर्चन मंगलकारीए
मुक्ति साधन भव भयहारी
भक्त वत्सल दीन दयालाए
ज्ञान सुधा है शिव कृपाला
शिव नाम की नौका है न्यारीए
जिसने सबकी चिंता टारी
जीवन सिंधु सहज जो तरनाए
शिव का हरपल नाम सुमिरना
तारकासुर को मारने वालेए
शिव है भक्तो के रखवाले
शिव की लीला के गुण गानाए
शिव को भूल के ना बिसराना
अन्धकासुर से देव बचायेए
शिव ने अद्भुत खेल दिखाये
शिव चरणो से लिपटे रहियेए
मुख से शिव शिव जय शिव कहिये
भाष्मासुर को वर दे डालाए
शिव है कैसा भोला भाला
शिव तीर्थो का दर्शन कीजोए
मन चाहे वर शिव से लीजो