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साढ़ेसाती और ढैया से चाहते है छुटकारा, तो नियमित करें इस चालीसा का पाठ

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता है वही शनिवार का दिन शनि महाराज को समर्पित है इस दिन शनिदेव की विधिवत पूजा करने का विधान है मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है कई भक्त भगवान शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन तेल, काले तिल, काले उड़द और काले लोहे व काले वस्त्र शनि महाराज को चढ़ाते हैं  मान्यता है कि ऐसा करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं

वही अगर कोई जातक साढ़ेसाती या ढैया के बुरे प्रकोप को झेल रहा है तो ऐसे में उसे शनिदेव की आराधना जरूर करनी चाहिए ज्योतिष अनुसार अगर शनि चालीसा का नियमित रूप से पाठ किया जाए तो शनि के बुरे प्रकोप से भी शुभ फल मिल सकता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री शनि चालीसा पाठ। 

श्री शनि चालीसा-

दोहा

जय.जय श्री शनिदेव प्रभुए सुनहु विनय महराज।

करहुं कृपा हे रवि तनयए राखहु जन की लाज।।

चौपाई

जयति.जयति शनिदेव दयाला।

करत सदा भक्तन प्रतिपाला।1।

चारि भुजा तन श्याम विराजै।

माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।

परम विशाल मनोहर भाला।

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।

हिये माल मुक्तन मणि दमकै।2।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा।

पल विच करैं अरिहिं संहारा।।

पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।

यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।

सौरि मन्द शनी दश नामा।

भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।

जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।

रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।

पर्वतहूं तृण होई निहारत।

तृणहूं को पर्वत करि डारत।।

राज मिलत बन रामहि दीन्हा। 

कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।

बनहूं में मृग कपट दिखाई।

मात जानकी गई चुराई।।

लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।

मचि गयो दल में हाहाकारा।।

दियो कीट करि कंचन लंका।

बजि बजरंग वीर की डंका।।

नृप विक्रम पर जब पगु धारा।

चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।

हार नौलखा लाग्यो चोरी।

हाथ पैर डरवायो तोरी।।

भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।

तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।

विनय राग दीपक महं कीन्हो।

तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।

हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।

आपहुं भरे डोम घर पानी।।

वैसे नल पर दशा सिरानी।

भूंजी मीन कूद गई पानी।। 

श्री शकंरहि गहो जब जाई।

पारवती को सती कराई।।

तनि बिलोकत ही करि रीसा।

नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।

पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।

बची द्रोपदी होति उघारी।।

कौरव की भी गति मति मारी।

युद्ध महाभारत करि डारी।। 

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।

लेकर कूदि पर्यो पाताला।।

शेष देव लखि विनती लाई।

रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।

वाहन प्रभु के सात सुजाना।

गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।

जम्बुक सिंह आदि नख धारी।

सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।

हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।

गर्दभहानि करै बहु काजा।

सिंह सिद्धकर राज समाजा।।

जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।

मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।

चोरी आदि होय डर भारी।।

तैसहिं चारि चरण यह नामा।

स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।

लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।

धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।

समता ताम्र रजत शुभकारी।

स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।

जो यह शनि चरित्रा नित गावै।

कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।

करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।

जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।

विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।

पीपल जल शनि.दिवस चढ़ावत।

दीप दान दै बहु सुख पावत।।

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

दोहा रू

प्रतिमा श्री शनिदेव कीए लोह धातु बनवाय।

प्रेम सहित पूजन करैए सकल कष्ट कटि जाय।।

चालीसा नित नेम यहए कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।

नि ग्रह सुखद ह्नैए पावहिं नर सम्मान।।