कैसे हुआ बृहस्पति ग्रह का जन्म और ये कैसे बने देवगुरु
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म और शास्त्रों में कुल नवग्रहों के बारे में बताया गया है वही सौर मंडल में भी नौ ग्रह उपस्थिति है जिसका लिखित प्रमाण इतिहास में भी मिलता है इन्हीं ग्रहों में सूर्य से पांचवा और सौर मंडल में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति है जिसे गुरु भी कहा जाता है ज्योतिषशास्त्र में इस ग्रह को सबसे अधिक अहम माना जाता है
वही राशि चक्र की धनु और मीन राशियों का स्वामी भी इसी को माना गया है ये ग्रह ज्ञान व बुद्धि का दाता माना जाता है मान्यता है कि गुरु ग्रह की कृपा से ही जातको को उचित सलाह मिलती है तो आज हम अपने इस लेख में बृहस्पति ग्रह पर ही चर्चा कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
गुरु ग्रह से जुड़ी पौराणिक कथा—
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे ऋषि अंगिरा जिनका विवाह स्मृति से हुआ था। इन्हीं के यहां उतथ्य और जीव नामक दो पुत्र हुए जीव बहुत ही बुद्धिमान व स्वभाव से शांत थे इन्होंने इंद्रियों पर विजय हासिल की थी। अपने पिता से शिक्षा प्राप्त करने लगे इनके साथ ही भार्गव श्रेष्ठ कवि भी इनके पिता ऋषि अंगिरा से शिक्ष ग्रहण कर रहे थे मगर अंगिर अपने पुत्र जीव की शिक्षा पर अधिक ध्यान देते थे और कवि को नजरंदाज करते इस भेदभाव को कवि ने महसूस किया और उन्होंने शिक्षा पाने का निर्णय बदल लिया। जीव को अंगिरा शिक्षा देते रहे।
जीव जल्द ही वेद शास्त्रों के ज्ञाता हो गए। इसके बाद जीव ने प्रभाष क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना कर शिव की कठोर साधन आरंभ कर दी। इनके कठिन तप से प्रसन्न होकर शिव ने साक्षात दर्शन दिए और कह कि मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं अब तुम अपने ज्ञान से देवताओं का मार्गदर्शन करो। उन्हें धर्म दर्शन व नीति का पाठ पढ़ाओं सृष्टि में तुम देवगुरु ग्रह बृहस्पति के नाम से जाने जाओगे। इस प्रकार शिव की कृपा से इन्हें देवगुरु की पदवी और नवग्रहों में स्थान प्राप्त हुआ। लेकिन कुछ पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि चंद्रमा बृहस्पति के शिष्य थे।