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भारत के इस पड़ोसी देश में है दुनिया की सबसे बड़ी सामूहिक कब्र, मिले 230 कंकाल

 

दुनिया में कई ऐसे रहस्यमय स्थल हैं, जहां इतिहास खुद को मिट्टी में दफ्न कर देता है। कभी युद्ध, कभी नरसंहार, तो कभी सत्ता की क्रूरता ऐसे निशान छोड़ जाती है, जिनकी सच्चाई वर्षों बाद सामने आती है। ऐसा ही एक रहस्य 2018 में उजागर हुआ श्रीलंका के मन्नार शहर में, जहां खुदाई के दौरान विश्व की सबसे बड़ी सामूहिक कब्र की खोज हुई। इस कब्र से 230 से अधिक कंकाल बरामद हुए, जिसने दुनियाभर के इतिहासकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और फोरेंसिक विशेषज्ञों को चौंका दिया।

कहां और कैसे हुई शुरुआत?

मन्नार श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक शहर है, जो लंबे समय तक गृह युद्ध और जातीय संघर्ष का गवाह रहा है। यहां एक निर्माण स्थल पर इमारत बनाने से पहले जब सामान्य खुदाई का काम शुरू हुआ, तो कुछ मानव हड्डियां नजर आईं। शुरू में इसे सामान्य माना गया, लेकिन जब हड्डियों की संख्या बढ़ने लगी, तो यह मामला अदालत तक पहुंचा। अदालत ने इस स्थान पर व्यापक खुदाई के आदेश दिए।

230 कंकाल और रहस्यों का पिटारा

खुदाई में जैसे-जैसे मिट्टी हटाई गई, वैसे-वैसे कंकालों की संख्या बढ़ती गई। अंततः 230 कंकाल बरामद हुए। श्रीलंका के कोलंबो स्थित केलानिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और फोरेंसिक पुरातत्व विशेषज्ञ राज सोमादेव खुदाई का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने कहा, "मेरे अनुभव में यह अब तक की सबसे बड़ी सामूहिक कब्र की खुदाई है।"

इन कंकालों के साथ-साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण और कुछ धातु की वस्तुएं भी मिलीं, जो संभवतः इन्हीं लोगों की निजी संपत्तियाँ थीं। इन अवशेषों से यह संकेत मिला कि इन लोगों का जीवन सामान्य था और वे किसी समुदाय का हिस्सा थे।

हड्डियों से मिले अहम सुराग

जब फोरेंसिक विशेषज्ञों ने कंकालों का अध्ययन किया, तो पाया कि अधिकांश हड्डियाँ कमजोर और टूटी हुई थीं। कुछ कंकालों से हड्डियां गायब भी थीं, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि मरने से पहले इन लोगों के साथ अत्यधिक हिंसा हुई होगी। कई कंकालों की संरचना यह भी दर्शाती है कि वे अधेड़ उम्र या युवा रहे होंगे।

इससे यह आशंका बलवती हो गई कि यह सामूहिक कब्र किसी बड़े नरसंहार का परिणाम हो सकती है।

क्या है मन्नार का ऐतिहासिक संदर्भ?

मन्नार शहर पर लंबे समय तक जातीय अल्पसंख्यक तमिलों का वर्चस्व रहा है। श्रीलंका में 1983 से 2009 तक चला गृह युद्ध तमिल टाइगर विद्रोहियों (LTTE) और श्रीलंकाई सेना के बीच संघर्ष का गवाह रहा है। इस युद्ध के दौरान हजारों लोगों की मौत हुई और कई लापता हो गए।

तमिल नेताओं और मानवाधिकार संगठनों ने पहले ही आरोप लगाए थे कि मन्नार इलाके में कई निर्दोष लोग सेना और विद्रोहियों के बीच संघर्ष के दौरान गायब हो गए थे। इन लोगों के परिवार वर्षों से न्याय की मांग कर रहे थे।

क्या यह नरसंहार का प्रमाण है?

पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि एक ही स्थान पर इतने अधिक कंकालों का मिलना संयोग नहीं हो सकता। इससे साफ संकेत मिलता है कि यह किसी पूर्व नियोजित सामूहिक हत्या या नरसंहार का हिस्सा हो सकता है। यह कब्र सिर्फ एक पुरातात्विक खोज नहीं, बल्कि इतिहास के सबसे क्रूर अध्यायों में से एक का दस्तावेज बन चुकी है।

हालांकि, श्रीलंका सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था कि यह कब्र किस काल की है और इसके पीछे कौन ज़िम्मेदार है। लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय जांच का विषय होना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मांग

इस खोज के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना पर चिंता जताई। एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाओं ने इस मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की मांग की। साथ ही यह भी मांग की गई कि पीड़ितों की पहचान की जाए और उनके परिजनों को न्याय दिया जाए।

निष्कर्ष: मिट्टी के नीचे दबी चीखें

श्रीलंका के मन्नार में मिली यह सामूहिक कब्र न केवल मानवता के खिलाफ हुए अपराध की याद दिलाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि समय चाहे जितना भी बीत जाए, सच कभी मिट नहीं सकता। 230 कंकालों की यह खोज आज उन सभी आवाज़ों का प्रतिनिधित्व करती है, जो कभी इंसाफ की उम्मीद में खामोश हो गई थीं।

इस तरह की घटनाएं दुनिया को यह सिखाने का काम करती हैं कि शांति की कीमत इतिहास की गलतियों को पहचानकर ही चुकाई जा सकती है। अब देखना यह है कि क्या श्रीलंका इन आवाज़ों को सुनकर कोई ठोस कदम उठाता है या ये कंकाल भी सच्चाई की कब्रगाह में दफ्न होकर रह जाएंगे।