800 साल पुरानी मस्जिद का नाम क्यों पड़ा 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा'?
अजमेर में स्थित 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नाम की यह मस्जिद भारत की सबसे रहस्यमयी और ऐतिहासिक मस्जिदों में से एक है। इसका नाम सुनते ही हर किसी के मन में एक सवाल आता है – आख़िर इसे 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' क्यों कहा जाता है?
इतिहास की परतें क्या कहती हैं?
यह इमारत पहले एक हिंदू और जैन मंदिर हुआ करती थी जिसे 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। 1192 ई. में जब मोहम्मद गौरी ने अजमेर पर जीत हासिल की, तो उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मंदिर को तोड़कर वहीं पर एक मस्जिद बनाने का आदेश दिया।
नाम में क्या है "अढ़ाई दिन"?
कहते हैं कि यह मस्जिद सिर्फ ढाई दिन (अढ़ाई दिन) में बनकर तैयार की गई थी। हालांकि हकीकत यह है कि इसमें मंदिर के टूटे हिस्सों को जोड़कर तेजी से एक ढांचा खड़ा किया गया, ताकि विजयी सेना अपने धर्म के अनुसार तुरंत नमाज़ अदा कर सके। इस काम को "ढाई दिन में निर्माण" के प्रतीक के रूप में याद किया गया और तभी से इसे "अढ़ाई दिन का झोपड़ा" कहा जाने लगा।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, "अढ़ाई दिन" केवल समय नहीं, बल्कि विजय, शक्ति और प्रदर्शन का प्रतीक भी था — यह दिखाने के लिए कि किस तरह एक सभ्यता को दूसरे में बदल दिया गया।
वास्तुकला में झलकता है अतीत
आज भी मस्जिद की दीवारों, स्तंभों और मेहराबों पर हिंदू और जैन मूर्तिकला के चिह्न साफ देखे जा सकते हैं। यानी, ये मस्जिद उस काल की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव की निशानी है।
निष्कर्ष:
'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह मस्जिद बेहद कम समय में पुराने मंदिर के अवशेषों से बनवाई गई थी — सिर्फ ढाई दिन में। यह सिर्फ एक मस्जिद नहीं, बल्कि 800 साल पुराने इतिहास, सत्ता संघर्ष और स्थापत्य कला का संगम है।