तिरुपति बालाजी की क्या है कहानी, आखिर क्यों भक्त क्यों देते हैं अपने बालों का दान? वैज्ञानिक भी नहीं उठा पाए पर्दा
भारत भूमि को चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिरों का देश कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन्हीं चमत्कारी धामों में एक प्रमुख नाम है तिरुपति बालाजी मंदिर, जो न केवल भारत बल्कि विश्वभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित है और भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी को समर्पित है।
यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, पर इसकी प्रसिद्धि केवल इसके भव्य निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां घटने वाले अलौकिक चमत्कार और वैज्ञानिक दृष्टि से अब तक अनसुलझे रहस्य भी इसे विशेष बनाते हैं।
रहस्यमयी तथ्य और दिव्य अनुभव
तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा को लेकर कई रहस्यमयी बातें प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो न तो उलझते हैं और हमेशा मुलायम बने रहते हैं। यही नहीं, गर्भगृह में जब आप प्रतिमा के सामने खड़े होते हैं तो ऐसा लगता है जैसे भगवान मध्य में स्थित हैं, लेकिन बाहर आते ही प्रतिमा दाहिनी ओर प्रतीत होती है। यह दृष्टि भ्रम है या चमत्कार—आज तक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला।
मंदिर में भगवान को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाए जाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इस रूप में माता लक्ष्मी भगवान के भीतर समाहित हैं। यह परंपरा दर्शाती है कि यह मंदिर ईश्वर के समग्र स्वरूप की पूजा का प्रतीक है।
दिव्यता का अनुभव और वैज्ञानिक रहस्य
मंदिर में भगवान की प्रतिमा पर अक्सर पसीना आता है, जिसे सेवक कपड़े से पोंछते हैं। कहा जाता है कि प्रतिमा विशेष पत्थर की बनी है, और इतनी जीवंत प्रतीत होती है कि जैसे भगवान साक्षात विराजमान हों। यही कारण है कि मंदिर का वातावरण सामान्य से ठंडा रखा जाता है।
एक और अद्भुत तथ्य यह है कि भगवान वेंकेटेश्वर की प्रतिमा पर चढ़ाया जाने वाला पचाई कपूर—जो आमतौर पर पत्थर को नुकसान पहुंचाता है—यहां कोई प्रभाव नहीं डालता। यह वैज्ञानिकों के लिए भी एक गूढ़ रहस्य बना हुआ है।
मंदिर की परंपराएं और चमत्कारिक तत्व
गुरुवार को भगवान को चंदन का लेप किया जाता है। जब यह लेप हटाया जाता है तो भगवान के वक्षस्थल पर मां लक्ष्मी की छवि उभर आती है, जिसे चमत्कार ही कहा जाता है। इसके अलावा, मंदिर में एक दीपक सदैव जलता रहता है—जिसे कब और किसने जलाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है, और इसमें कभी तेल या घी नहीं डाला जाता।
मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां केवल स्थानीय लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। यह गांव मंदिर के लिए फूल, फल, दूध और अन्य प्रसाद सामग्री उपलब्ध कराता है। यहां के लोग पूर्ण अनुशासन में जीवन जीते हैं।