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अजब-गजब है ये मंदिर, हार-फूल, नारियल नहीं यहां पत्थरों से खुश होती हैं देवी मां

 

भारत विविधताओं और आस्थाओं का देश है। यहां हजारों मंदिर हैं, जहां भक्तगण बड़ी श्रद्धा से फूल, प्रसाद और माला चढ़ाकर देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ऐसा मंदिर देखा है जहां भगवान को फूल या माला नहीं, बल्कि पत्थर चढ़ाए जाते हों? सुनने में अजीब लगता है, लेकिन यह बिल्कुल सच है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में स्थित बगदाई माई का मंदिर एक ऐसा ही चमत्कारी स्थल है, जहां चमरगोटा नामक खास पत्थर माता को अर्पित किया जाता है।

कहां स्थित है यह चमत्कारी मंदिर?

यह मंदिर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर से मात्र 5 किलोमीटर दूर ग्राम खमतराई में स्थित है। यहां की लोक आस्था और परंपरा इस मंदिर को खास बनाती है। बगदाई माई को इस क्षेत्र की वनदेवी माना जाता है, क्योंकि यह मंदिर कभी घनघोर जंगलों के बीच स्थित था। आज भी भक्त माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से आते हैं और देवी को उनकी प्रिय भेंट – पत्थर – चढ़ाते हैं।

माता को पत्थर चढ़ाने की परंपरा कैसे शुरू हुई?

इस प्राचीन परंपरा के पीछे एक बेहद दिलचस्प कथा जुड़ी हुई है। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित अश्वनी तिवारी बताते हैं कि बहुत समय पहले यहां जंगल हुआ करता था और उस दौर में खमतराई गांव में गिनती के लोग ही रहते थे। मंदिर तक पहुंचने का कोई पक्का रास्ता नहीं था, सिर्फ एक संकरी सी पगडंडी थी जिससे लोग आते-जाते थे। एक दिन पुजारी को स्वप्न में एक दिव्य रौशनी वाला पत्थर दिखाई दिया, जो जमीन से निकल रहा था। जब उन्होंने गांव वालों को ये बात बताई और सब लोग उस स्थान पर पहुंचे, तो वहां ठीक वैसा ही पत्थर मिला जैसा स्वप्न में देखा गया था। लोगों ने इसे कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि मां बगदाई की दिव्य शक्ति का प्रतीक माना। उस समय लोगों के पास पूजा के लिए साधन नहीं थे, इसलिए उन्होंने मां को प्रसन्न करने के लिए वहीं जमीन पर पड़े चमरगोटा पत्थर को ही अर्पण करना शुरू कर दिया। तभी से यह परंपरा बन गई कि जो भी भक्त मां से मुराद मांगता है, वह मां को पत्थर चढ़ाता है।

कैसा होता है चमरगोटा पत्थर?

यह पत्थर कोई आम पत्थर नहीं होता। चमरगोटा पत्थर खासतौर पर मुरुम खदानों, खेतों और पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है। भक्तों को इसे ढूंढना पड़ता है, और वे इसे चुनकर लाते हैं। यह कार्य आसान नहीं होता, क्योंकि मां बगदाई की मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मेहनत करता है और मां को प्रसन्न करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

क्यों कहते हैं बगदाई माई को 'मनोकामना देवी'?

बगदाई माई को श्रद्धालु 'मनोकामना देवी' कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां मान्यता है कि जो भी भक्त माता को सच्चे मन, श्रम और विश्वास से पत्थर चढ़ाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि आज भी श्रद्धालु मां की परीक्षा में सफल होने के लिए खेतों में मेहनत करते हैं, और कठिनाइयों से गुजर कर देवी को उनका प्रिय पत्थर अर्पित करते हैं।

आज भी जीवित है ये परंपरा

भले ही आज के समय में विज्ञान और तकनीक ने लोगों के सोचने का नजरिया बदल दिया हो, लेकिन खमतराई गांव में आज भी मां बगदाई की परंपरा जीवित है। मंदिर के आसपास अब बस्ती बस गई है, लेकिन मां को पत्थर चढ़ाने की परंपरा आज भी जारी है। लोग शादी, संतान, नौकरी, परीक्षा या बीमारी जैसी मनोकामनाओं के लिए मां के दरबार में पत्थर चढ़ाते हैं।