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 खतरनाक ग्लेशियर, जिनके पिछलने से धरती पर आ सकती है प्रलय

 

इन दिनों भारत के पहाड़ी इलाकों में भारी बर्फबारी हो रही है। इसके साथ ही दुनिया के कई अन्य हिस्सों से भी बर्फबारी की खबरें आ रही हैं। बर्फबारी के इस मौसम में हम आपको दुनिया की एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं। जहाँ केवल बर्फ और बर्फ है। जिसे ग्लेशियर कहा जाता है। इस ग्लेशियर के पीछे हटने से पूरी दुनिया में तबाही भी मच सकती है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर की। जिसे दुनिया का सबसे बड़ा और खतरनाक ग्लेशियर माना जाता है।

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दरअसल, अंटार्कटिका के पश्चिमी भाग में स्थित यह ग्लेशियर समुद्र के नीचे कई किलोमीटर की गहराई में डूबा हुआ है। इस ग्लेशियर की आंतरिक चौड़ाई लगभग 468 किलोमीटर मानी जाती है। यह ग्लेशियर समुद्र के अंदर एक विशालकाय राक्षस की तरह फैला हुआ है। यदि सबसे मजबूत जहाज भी इस ग्लेशियर से टकरा जाए तो भयानक दुर्घटना हो सकती है।

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थ्वाइटस ग्लेशियर का क्षेत्रफल 1,92,000 वर्ग किलोमीटर है। यदि इतना विशाल ग्लेशियर पिघल गया तो पूरी दुनिया में तबाही मच जाएगी। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इस ग्लेशियर का पिघलना शुरू हो चुका है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार इस ग्लेशियर के अंदर छेद बन रहे हैं। इस ग्लेशियर में इतना बड़ा छेद है, जो अमेरिका के मैनहट्टन शहर का दो तिहाई हिस्सा है।

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हालाँकि, वैज्ञानिकों को इतनी जानकारी प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। क्योंकि इस ग्लेशियर के आसपास का मौसम इतना तूफानी है कि इसकी सैटेलाइट इमेज भी साफ नहीं आ पाती। इस ग्लेशियर की तस्वीरें लेने के लिए ही अमेरिका और ब्रिटेन ने इंटरनेशनल थ्वाइट ग्लेशियर कोलैबोरेशन नामक एक बड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए।

आपको बता दें कि अगर यह ग्लेशियर पिघल गया तो दुनियाभर के समुद्रों का स्तर 2 से 5 फीट तक बढ़ जाएगा, जिससे तटीय इलाके पानी से डूब जाएंगे। ऐसी स्थिति में विभिन्न देशों की करोड़ों की आबादी या तो मारे जायेंगे या विस्थापन का शिकार हो जायेंगे। आशंका जताई जा रही है कि इस ग्लेशियर के पिघलने से अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा और महामंदी आ जाएगी।

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थ्वाइट ग्लेशियर के पिघलने से बाढ़ के अलावा कई अन्य दुष्प्रभाव भी होंगे। अंटार्कटिका की बर्फ विश्व के ताजे पानी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा है। अब एक साथ पिघलने से जलस्तर तो बढ़ेगा लेकिन अन्य क्षेत्रों में पानी की कमी हो जाएगी। वे नदियाँ सूख जाएँगी जिनके जल का स्रोत ग्लेशियर हैं। इन सभी खतरों को देखते हुए वैज्ञानिक थ्वाइट ग्लेशियर को प्रलय दिवस ग्लेशियर भी कहते हैं, यानी ऐसा ग्लेशियर जिसके पिघलने से प्रलय आ जाएगा।