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इस मंदिर में हैं मां काली की दो प्रतिमाएं, अद्भुत है यहां की एक मूर्ति की कहानी, जानें क्या है इतिहास

 

भारत में मां काली के कई मंदिर हैं, जहां उनकी पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ होती है। लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जहां मां काली की दो प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं और उनमें से एक की कहानी बेहद अद्भुत और रोचक है। ऐसे ही एक खास मंदिर की बात करें, तो यहां मां काली की दो मूर्तियां मौजूद हैं, जिनकी मान्यता और इतिहास काफी दिलचस्प है।

मंदिर की खास बात: दो प्रतिमाएं

यह मंदिर अपनी विशिष्टता के कारण लोगों के बीच प्रसिद्ध है क्योंकि यहां मां काली की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। पहली मूर्ति पारंपरिक काली स्वरूप में है, जो शक्तिशाली, रौद्र और भयंकर देवी का रूप दर्शाती है। वहीं दूसरी मूर्ति कुछ अलग है, जिसकी अपनी अनोखी कहानी है। यह मूर्ति अन्य मंदिरों में देखी जाने वाली मूर्तियों से बिलकुल अलग है, और इसके पीछे एक गहरा रहस्य छिपा हुआ है।

अद्भुत मूर्ति की कहानी

मंदिर की दूसरी मूर्ति की कहानी सदियों पुरानी है। बताया जाता है कि यह मूर्ति किसी समय प्रकृति की ताकत और मानवता के बीच एक पुल का काम करती थी। कहा जाता है कि इस मूर्ति का निर्माण एक ऐसे संत या शिल्पकार ने किया था, जिसने मां काली की रौद्रता के साथ-साथ उनकी मातृत्व की दयालुता को भी दर्शाने की कोशिश की। इस मूर्ति में काली माता का रूप क्रूर नहीं, बल्कि सौम्य और करुणामयी दिखाया गया है।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह मूर्ति भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती है और संकट के समय उनकी रक्षा करती है। कई पुरानी कथाओं के अनुसार, इस मूर्ति के दर्शन मात्र से ही भक्तों के घर सुख-शांति और समृद्धि आती है।

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर की स्थापना कई शताब्दियों पहले हुई थी। मंदिर का निर्माण किसी राजा या शासक द्वारा नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की आस्था और सहयोग से हुआ था। शुरुआती दिनों में यह मंदिर एक छोटा सा स्थान था, लेकिन समय के साथ इसकी मान्यता बढ़ती गई और भक्तों की संख्या भी बढ़ी। मां काली की दोनों प्रतिमाओं के प्रति श्रद्धा इतनी प्रगाढ़ थी कि यह मंदिर क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया।

कई लोगों का मानना है कि यह मंदिर पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पांडवों ने भी मां काली की पूजा की थी और उनकी सुरक्षा में यह स्थान पवित्र माना जाता है।

भक्तों की आस्था और मान्यता

मंदिर में मां काली की दोनों मूर्तियों को समान श्रद्धा से पूजा जाता है। लोग यहां हर साल नवरात्रि और कार्तिक मास में विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। मंदिर में होने वाले उत्सव और मेले स्थानीय संस्कृति का अहम हिस्सा हैं। यहां पर भक्तों द्वारा बकरे, मुर्गे, और अन्य भोग चढ़ाने की परंपरा भी आज तक जीवित है, जो मां काली की रौद्रता और दया दोनों को दर्शाती है।

निष्कर्ष

यह मंदिर मां काली की दो अलग-अलग प्रतिमाओं के लिए जाना जाता है, जिनमें से एक की कहानी वास्तव में अद्भुत है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां की मूर्तियां मां काली के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं – एक तरफ उनकी शक्ति और क्रूरता, तो दूसरी ओर उनकी मातृत्व की करुणा।

ऐसे मंदिरों की कहानियां हमें हमारे धर्म और संस्कृति की गहराईयों से अवगत कराती हैं और हमारी आस्था को मजबूत करती हैं। यदि कभी मौका मिले तो इस मंदिर की यात्रा जरूर करें और मां काली के इन अनोखे रूपों का दर्शन करें।