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यहां मौजूद है दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर, मगर नहीं एक भी हिंदू, जानें क्या है कारण ?

 

दुनिया भर में हिंदू मंदिरों की एक से बढ़कर एक शानदार और भव्य संरचनाएं हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर उस देश में मौजूद है जहां आज एक भी हिंदू नहीं रहता? जी हां, यह चौंकाने वाला सच जुड़ा है कंबोडिया के अंगकोर वाट मंदिर से, जो स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण होने के साथ-साथ विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर परिसर भी है।

अंगकोर वाट: विश्व का सबसे विशाल हिंदू मंदिर

कंबोडिया के सिएम रीप शहर में स्थित अंगकोर वाट मंदिर 12वीं सदी में बनाया गया था। इसे खमेर सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय ने भगवान विष्णु को समर्पित करके बनवाया था। यह मंदिर 162.6 हेक्टेयर (400 एकड़ से भी ज्यादा) क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया हुआ है।

फिर अब यहां एक भी हिंदू क्यों नहीं?

हालांकि यह मंदिर पूरी तरह से हिंदू संस्कृति और धार्मिक स्थापत्य के अनुसार बना था, लेकिन समय के साथ यहां की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों में भारी बदलाव आया।

  • 13वीं शताब्दी के बाद बौद्ध धर्म ने कंबोडिया में तेजी से जगह बना ली।

  • धीरे-धीरे अंगकोर वाट को भी बौद्ध धर्मस्थल में बदल दिया गया।

  • अब यह एक बौद्ध मंदिर के रूप में पूजा जाता है, और वहां आज रहने वाली अधिकांश आबादी थेरवादा बौद्ध धर्म को मानती है।

हिंदू इतिहास के निशान अब भी मौजूद

आज भले ही अंगकोर वाट एक बौद्ध तीर्थस्थल बन चुका हो, लेकिन इसकी दीवारों पर रामायण, महाभारत, और भगवान विष्णु और शिव के चित्र उकेरे हुए हैं। विशाल शिखर, मंडप, गर्भगृह और शिल्पकारी – सब कुछ प्राचीन भारतीय मंदिर शैली को दर्शाता है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि कभी कंबोडिया हिंदू संस्कृति और धर्म का मजबूत केंद्र हुआ करता था।

पर्यटन और वैश्विक मान्यता

हर साल लाखों पर्यटक अंगकोर वाट को देखने कंबोडिया पहुंचते हैं। यह मंदिर न सिर्फ कंबोडिया के झंडे में स्थान रखता है, बल्कि देश की पहचान भी है।
कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय हिंदू श्रद्धालु इसे देखने जरूर जाते हैं, लेकिन स्थानीय रूप से वहां कोई हिंदू समुदाय नहीं बचा है।

निष्कर्ष

अंगकोर वाट सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास है – यह हमें बताता है कि कैसे धर्म, समय और राजनीति के साथ बदलते हैं, लेकिन विरासत अमिट रहती है। यह मंदिर आज भी दुनिया के सामने हिंदू वास्तुकला की भव्यता, वैज्ञानिकता और आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक बना हुआ है – भले ही वहां अब एक भी हिंदू न हो।