सदियों से वीरान पड़े कुलधरा के इस मंदिर में आज भी सुनाई देती है घंटियों की आवाजे, वीडियो में खौफनाक रहस्य जान उड़ जाएंगे होश
राजस्थान के थार मरुस्थल की तपती रेत के बीच बसा एक ऐसा गाँव है जो सदियों से वीरान पड़ा है, मगर उसकी हवाओं में अब भी भक्ति की एक गूंज सुनाई देती है। हम बात कर रहे हैं जैसलमेर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित कुलधरा गाँव की, जिसे भारत का सबसे रहस्यमयी और 'श्रापित' गाँव भी कहा जाता है। लेकिन इस गांव के ठीक बीचोंबीच स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो इस वीराने में आज भी आस्था की लौ जलाए हुए है।कहते हैं कि जब कोई यहां आता है और इस मंदिर की सीढ़ियां चढ़ता है, तो उसे हवा में कुछ अलग सा एहसास होता है – मानो किसी ने अभी-अभी प्रार्थना पूरी की हो। इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं, कोई आरती नहीं, लेकिन फिर भी एक दिव्य उपस्थिति का अनुभव हर आगंतुक करता है।
पालीवाल ब्राह्मणों की रहस्यमयी विरासत
कुलधरा गाँव को कभी पालीवाल ब्राह्मणों ने बसाया था, जो बुद्धिमत्ता और संस्कृति के लिए पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध थे। वे जल प्रबंधन, वास्तुकला और कृषि के जानकार माने जाते थे। करीब 13वीं सदी में बसा यह गाँव, 19वीं सदी की शुरुआत तक एक समृद्ध और सुंदर बस्ती हुआ करता था।मगर एक रात ऐसा कुछ हुआ कि पूरे कुलधरा गाँव के साथ-साथ आसपास के 83 गाँवों के लोग भी अपने घर छोड़कर कहीं गायब हो गए। और तब से यह गाँव वीरान पड़ा है। इतिहासकारों और स्थानीय कथाओं के अनुसार, गाँव छोड़ने का मुख्य कारण जैसलमेर के एक क्रूर दीवान सालम सिंह की बुरी नजर और अत्याचार था, जो गाँव की एक ब्राह्मण कन्या से विवाह करना चाहता था।पालीवालों ने अपनी अस्मिता और गरिमा की रक्षा के लिए गाँव छोड़ दिया, लेकिन जाते-जाते इस स्थान को श्रापित कर गए कि कोई भी यहां दोबारा बस नहीं पाएगा। यह श्राप अब तक कायम है, और गाँव आज भी खाली है। मगर इन सब के बीच मंदिर अब भी खड़ा है – एकमात्र संरचना जो आज भी श्रद्धा और रहस्य का केंद्र बनी हुई है।
मंदिर: एक मौन साक्षी
इस प्राचीन मंदिर की संरचना पक्के पत्थरों से बनी है और यह गाँव के सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। यह मंदिर किसी विशेष देवता को समर्पित नहीं है – कुछ इसे शिव मंदिर मानते हैं, कुछ इसे पालीवालों के कुल देवता का स्थान कहते हैं।मगर जो बात इसे खास बनाती है, वो है उस स्थान की ऊर्जा। यहां जाने वाले लोगों का कहना है कि मंदिर के भीतर घुसते ही वातावरण अचानक शांत हो जाता है। एक अजीब-सी स्थिरता और गंभीरता हर कोने में महसूस होती है, मानो किसी ने अभी-अभी प्रार्थना की हो।यहां कोई आरती नहीं होती, लेकिन लोग बताते हैं कि कई बार मंदिर के आस-पास शंख या मंत्रों की हल्की गूंज सुनाई देती है, जबकि आसपास कोई नहीं होता।
क्या ये श्रद्धा है या कोई अधूरी आत्मा की पुकार?
इस प्रश्न का उत्तर आज तक कोई नहीं दे पाया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ये सब मात्र ध्वनि प्रतिध्वनि, या मानव मस्तिष्क की कल्पनाशक्ति हो सकती है। मगर जब आप खुद कुलधरा के इस मंदिर में खड़े होते हैं, तो मन यही सोचने पर मजबूर होता है – क्या वाकई कोई अधूरी प्रार्थना आज भी वहां गूंज रही है?स्थानीय लोग मानते हैं कि पालीवाल ब्राह्मणों की आत्माएं आज भी गाँव में और इस मंदिर में मौजूद हैं। उनका विश्वास है कि जब तक इस मंदिर में श्रद्धा रहेगी, तब तक ये आत्माएं शांत रहेंगी।
पर्यटन के लिए आकर्षण, लेकिन आदर के साथ
आज कुलधरा गाँव एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन चुका है। यहां दिन के समय हजारों पर्यटक आते हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद यहां रुकने की अनुमति नहीं है। स्थानीय प्रशासन और पर्यटन विभाग ने सुरक्षा कारणों से ये नियम बनाए हैं।पर्यटक जब मंदिर में जाते हैं, तो कुछ तो सेल्फी लेते हैं, कुछ मंत्र बुदबुदाते हैं और कुछ चुपचाप खड़े हो जाते हैं – मानो कोई अनकहा संवाद चल रहा हो।
निष्कर्ष: एक मंदिर, एक कहानी, एक चेतावनी
कुलधरा गाँव का यह मंदिर सिर्फ एक स्थापत्य नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी पीड़ा, श्रद्धा और संस्कृति का संगम है। यह हमें याद दिलाता है कि कैसे एक पूरी सभ्यता अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए सबकुछ त्याग सकती है, लेकिन अपनी आत्मा को एक मंदिर में समेट कर छोड़ सकती है।आज भी जब कोई इस मंदिर में जाता है, तो लगता है जैसे पालीवाल ब्राह्मणों की आखिरी प्रार्थनाएं हवा में तैर रही हैं – एक मौन गूंज, जो समय की सीमा को लांघकर आज भी हमारे कानों तक पहुंचती है।