हिमाचल के इस मंदिर की मिट्टी घर में रखने से नहीं आते सांप व बिच्छू, शनिवार को लगता है मेला,
हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की पावन भूमि है, जहाँ पूरे वर्ष अनेक मेलों और त्योहारों का आयोजन होता है। इनमें से एक प्रमुख मेला नूरपुर के नागनी माता मंदिर पर लगता है, जो सांप-बिच्छू और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं के काटने का चमत्कारिक उपचार स्थल भी माना जाता है।
नागनी माता का मंदिर और उसकी विशेषता
पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसे नागनी (भड़वार) गांव में स्थित यह मंदिर खासतौर पर श्रावण और भादों मास (जुलाई-अगस्त) के दौरान हर शनिवार को लगने वाले मेले के लिए प्रसिद्ध है। हजारों श्रद्धालु हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर से भी इस मंदिर में माता के दर्शन और जलधारा के चमत्कारिक जल से उपचार के लिए आते हैं।
सांप और बिच्छू के डंक का चमत्कारिक इलाज
श्रद्धा है कि जो भी नागनी माता के जलधारा के पानी से प्यास बुझाता है और शक्कर नामक मिट्टी का लेप अपने जख्म पर लगाता है, वह सांप-बिच्छू के डंक से पूरी तरह ठीक हो जाता है। यह शक्कर मिट्टी घर में रखने मात्र से भी सांप-बिच्छू नहीं आते। इसी कारण इस मंदिर को सर्पदंश रोगियों का प्रमुख उपचार स्थल माना जाता है।
मंदिर स्थापना की प्रचलित दंतकथा
प्राचीन काल में यह क्षेत्र घने जंगलों से भरा था, जहाँ राजा जगत सिंह का शासन था। एक कोढ़ी ने यहाँ साधना की और स्वप्न में माता नागनी को देखा, जिन्होंने दूध की नदी और मिट्टी से रोग मुक्ति का वरदान दिया। कोढ़ी ने नहाकर और मिट्टी लगाकर अपने रोग से छुटकारा पाया। इस चमत्कार के बाद मंदिर की स्थापना हुई और यह स्थान सर्पदंश एवं चर्म रोगों के लिए प्रसिद्ध हो गया। एक अन्य कथा के अनुसार, एक सपेरे ने नागनी माता को पकड़ लिया था, लेकिन राजा जगत सिंह ने उसे मुक्त कराकर मंदिर में पुनः स्थापित किया।
पुजारी परिवार और मंदिर समिति
यह मंदिर ठाकुर मैहता परिवार के राजपूतों के अधीन रहा है, जिन्होंने लगभग 60 पीढ़ियों तक पुजारी का दायित्व निभाया। वर्तमान में 32 परिवार बारी-बारी से पूजा-अर्चना करते हैं। मार्च 1971 में मंदिर प्रबंधन समिति का गठन हुआ, जिसने मंदिर के संचालन को संगठित किया।
जलधारा और क्षेत्र की सेवा
मंदिर के पास बहने वाली जलधारा से चार किलोमीटर के दायरे में कई गांवों को पेयजल प्रदान किया जाता है। इस क्षेत्र में कभी भी पानी की कमी नहीं होती, जो माता नागनी के आशीर्वाद का ही परिणाम माना जाता है।