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घर बैठे वोट डाल सकेंगे लोग, इस देश में होने जा रही है मोबाइल फोन से वोटिंग

 

दुनिया में मोबाइल फोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। अब यह केवल संचार का साधन नहीं रहा, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। चाहे वह बैंकिंग हो, ऑनलाइन शॉपिंग, वीडियो कॉलिंग या बिल पेमेंट – हर कार्य अब मोबाइल से संभव है। इसी कड़ी में अब मोबाइल फोन एक और बेहद जरूरी और संवेदनशील कार्य के लिए इस्तेमाल होने जा रहा है, और वह है – वोटिंग।

अमेरिका में हो रही है मोबाइल से वोटिंग की शुरुआत

अमेरिका के पश्चिमी वर्जीनिया राज्य ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। यहां नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों (Midterm Elections) में, देश से बाहर काम कर रहे सैनिकों और नागरिकों को मोबाइल फोन के माध्यम से मतदान करने की सुविधा दी जा रही है। यह पहली बार है जब किसी संघीय चुनाव (federal election) में इस तरह की तकनीक का उपयोग किया जाएगा।

यह कदम खासकर उन सैनिकों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो अमेरिका से बाहर तैनात हैं और पारंपरिक तरीकों से वोट डालना उनके लिए मुश्किल होता है।

Voatz ऐप से होगा मोबाइल मतदान

वोटिंग की इस डिजिटल प्रक्रिया को संभव बनाने के लिए एक खास मोबाइल ऐप का सहारा लिया गया है – Voatz (वोट्ज़)। यह ऐप बोस्टन की एक टेक कंपनी ने बनाया है, और इसे कई बार प्राइवेट चुनावों और सीमित ट्रायल्स में इस्तेमाल किया जा चुका है। उदाहरण के तौर पर, "रॉक एंड रोल हॉल ऑफ फेम" जैसे कार्यक्रमों में इस ऐप से मतदान हो चुका है।

अब पहली बार इसे किसी सरकारी चुनाव में लागू किया जा रहा है, जो तकनीकी विकास की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

विशेषज्ञों की चिंता: क्या यह सुरक्षित है?

जहां एक ओर इस फैसले को डिजिटल लोकतंत्र की दिशा में नई शुरुआत माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कई साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और चुनाव विश्लेषक इस तकनीक पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं।

कंप्यूटर और चुनाव सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञों ने मोबाइल से मतदान को “भयानक विचार” तक करार दिया है। उनका कहना है कि मोबाइल वोटिंग में हैकिंग, डेटा चोरी, ऐप में बग्स और वोटिंग की गोपनीयता पर सवाल उठते हैं।

विशेषकर जब अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि इस बार के मध्यावधि चुनावों में रूसी हैकरों के हस्तक्षेप की संभावना है, तो ऐसे समय में मोबाइल वोटिंग एक जोखिम भरा प्रयोग साबित हो सकता है।

2016 की घटना से सबक जरूरी

यह कोई पहली बार नहीं है जब चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की बात उठी हो। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में भी यह आरोप लगे थे कि रूसी सरकार के समर्थन से हैकरों ने अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में दखल देने की कोशिश की थी। इस मामले में लंबे समय तक जांच चली और अमेरिकी लोकतंत्र पर भरोसे को गहरा आघात लगा।

अब जब एक बार फिर चुनाव हो रहे हैं और इस बार मतदान की प्रक्रिया डिजिटल हो रही है, तो ये चिंताएं और भी गहरी हो जाती हैं।

फिर भी सरकार का भरोसा – सुरक्षित है ये प्रक्रिया

पश्चिमी वर्जीनिया के राज्य सचिव मैक वॉर्नर और Voatz ऐप बनाने वाली कंपनी का दावा है कि यह ऐप और पूरी प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड है। उन्होंने कहा कि ऐप में बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और डेटा एनक्रिप्शन जैसे उन्नत फीचर्स का इस्तेमाल किया गया है, जिससे चुनाव में पारदर्शिता और गोपनीयता बनी रहेगी।

कंपनी का यह भी कहना है कि सभी वोटर की पहचान को कई स्तरों पर सत्यापित किया जाएगा और एक विशेष ब्लॉकचेन रजिस्ट्रेशन सिस्टम के जरिये वोट दर्ज किया जाएगा, जिससे कोई वोट दोबारा न डाला जा सके और परिणामों में किसी तरह की छेड़छाड़ न हो।

क्या भारत जैसे देश इसके लिए तैयार हैं?

इस पूरी प्रक्रिया ने दुनियाभर में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भविष्य में भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में भी मोबाइल वोटिंग संभव हो सकेगी? भारत में भी कई लोग आज प्रवासी भारतीय (NRI) हैं, सैनिक हैं या चुनाव वाले दिन घर से दूर होते हैं। ऐसे में मोबाइल वोटिंग जैसी सुविधा से वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है।

हालांकि, भारत में भी सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा – क्या इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए तकनीकी रूप से सुरक्षित और पारदर्शी मोबाइल वोटिंग प्रणाली विकसित की जा सकती है?

निष्कर्ष

मोबाइल से वोटिंग करना एक क्रांतिकारी कदम है, जो लोकतंत्र को ज्यादा सुलभ और भागीदारीपूर्ण बना सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया की सफलता सुरक्षा, पारदर्शिता और भरोसे पर टिकी है। यदि इन तीनों बिंदुओं को मजबूत किया गया, तो निश्चित रूप से यह तकनीक भविष्य में पूरी दुनिया के चुनावी परिदृश्य को बदल सकती है।

हालांकि फिलहाल यह प्रयोग एक सीमित दायरे में हो रहा है, लेकिन इसकी सफलता या विफलता भविष्य के डिजिटल वोटिंग सिस्टम के लिए दिशा तय करेगी।