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वृंदावन के रहस्य: क्यों नहीं बजायी जाती बाँके बिहारी मंदिर में घंटी

 

वाराणसी के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को भगवान कृष्ण को समर्पित एक प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है। लाखों भक्त यहाँ हर साल दर्शन करने आते हैं। लेकिन इस मंदिर से जुड़ा एक बड़ा और रोचक रहस्य है — इस मंदिर में न तो कोई घंटी है और न ही कभी घंटी बजाई जाती है। जबकि सामान्यतः हर मंदिर में घंटी बजाना अनिवार्य होता है, बांके बिहारी मंदिर की यह खास परंपरा सभी के मन में सवाल उठाती है।

बाल रूप में पूजे जाते हैं बांके बिहारी

बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण को बाल स्वरूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि भगवान को इस बाल रूप में शांतिपूर्ण और आरामदायक वातावरण की आवश्यकता होती है। मंदिर में घंटी की तेज आवाज उन्हें परेशान कर सकती है, इसलिए यहाँ घंटी बजाने की परंपरा नहीं है।

भगवान के आराम का ध्यान

मंदिर के पुजारियों और भक्तों का मानना है कि ठाकुर जी (बांके बिहारी) को शांति और आराम की जरूरत होती है। इसलिए मंदिर में कोई घंटी, घंटा या घड़ियाल नहीं बजाए जाते हैं ताकि भगवान को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। यह धार्मिक विश्वास वर्षों से चला आ रहा है और आज भी इस परंपरा का कड़ाई से पालन किया जाता है।

मंगला आरती भी सीमित

घंटी न बजाने की इस परंपरा का एक और पहलू यह है कि बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती भी रोजाना नहीं की जाती। यह परंपरा भगवान के आराम का ही हिस्सा है। भक्त इस बात को समझते हैं और अपनी भक्ति में इस नियम का सम्मान करते हैं।

धार्मिक मान्यताएं और श्रद्धा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर में घंटी या अन्य आवाज़ वाले यंत्र बजाने से भगवान को परेशानी हो सकती है। इसलिए यहां यह पूरी व्यवस्था भगवान के अनुकूल बनाए रखी गई है। इस रहस्य और परंपरा के चलते बांके बिहारी मंदिर और भी खास बन गया है और भक्तगण इसे एक पवित्र स्थल के रूप में देखते हैं, जहां भगवान की खुशी और आराम सर्वोपरि है।