अद्भुत संयोग या दिव्य योजना! एक सीधी रेखा में बसे 7 प्राचीन शिवालय, जिनके रहस्य आज भी अनसुलझे
देवाधिदेव को अत्यंत प्रिय सावन का महीना आज समाप्त होने वाला है। इस महीने में देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है। देशभर में ऐसे कई शिव मंदिर हैं, जिनमें भक्ति के साथ-साथ अद्भुतता भी समाहित है। ऐसे ही मंदिरों में शिव के कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो 'शिव शक्ति अक्ष रेखा' में स्थित हैं। भारत में सात प्राचीन शिव मंदिर 79 डिग्री देशांतर पर एक सीधी रेखा में स्थित हैं। इस रेखा को 'शिव शक्ति अक्ष रेखा' कहते हैं, जो उत्तर में केदारनाथ से दक्षिण में रामेश्वरम तक फैली हुई है।
आदि शंकराचार्य ने करवाया था जीर्णोद्धार
इन मंदिरों की दूरी लगभग 2,382 किलोमीटर है, और इनमें से पाँच मंदिर पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान और वास्तुशास्त्र की गहरी समझ को भी दर्शाता है। शिव शक्ति रेखा का उत्तरी छोर केदारनाथ मंदिर है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उत्तराखंड में स्थित है। हिमालय की गोद में मंदाकिनी नदी के तट पर 3,583 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव की महिमा का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था और 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
वायु तत्व का प्रतिनिधित्व
श्रीकालहस्ती मंदिर वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। स्वर्णमुखी नदी के तट पर बने इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को वायु लिंगम कहा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से, बंद गर्भगृह में दीपक की लौ निरंतर गतिमान रहती है, जो वायु की उपस्थिति को दर्शाती है। यह मंदिर तिरुपति से 36 किमी दूर है और माना जाता है कि इसका निर्माण 5वीं शताब्दी में हुआ था।
पृथ्वी तत्व का प्रतीक
पृथ्वी तत्व का प्रतीक यह एकम्बेश्वरनाथ मंदिर, तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है। यहाँ स्थित शिवलिंग रेत से बना एक स्वयंभू लिंग है, जिसकी स्थापना देवी पार्वती ने की थी। लगभग 600 ईस्वी में चोल वंशियों द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया था। 172 फीट ऊँचा राजगोपुरम इसकी भव्यता का प्रमाण है।
अग्नि तत्व का प्रतीक
अगला नंबर अरुणाचलेश्वर मंदिर का आता है, जो तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में स्थित है। अग्नि तत्व का प्रतीक यह मंदिर अरुणाचल पर्वत की तलहटी में स्थित है। यहाँ शिव की अग्नि लिंगम के रूप में पूजा की जाती है। कार्तिक दीपम उत्सव के दौरान पहाड़ी पर एक भव्य दीप प्रज्वलित किया जाता है, जो शिव की अग्नि शक्ति को दर्शाता है। चोल वंश ने इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में शुरू किया था।
जल तत्व का प्रतीक
जम्बूकेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तिरुवनाइकवल में स्थित है। जल तत्व का प्रतीक यह मंदिर त्रिची में है। यहाँ गर्भगृह में स्थित भूमिगत जल स्रोत से शिवलिंग पर निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है। 1800 वर्ष पुराने इस मंदिर का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।
आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व
तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित थिल्लई नटराज मंदिर आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित है। 10वीं शताब्दी में चोल वंश द्वारा निर्मित यह मंदिर वैदिक और तमिल पूजा पद्धतियों का संगम है। यहाँ शिवलिंग की निराकार रूप में पूजा की जाती है।
दक्षिणी छोर पर रामेश्वरम
शिव शक्ति रेखा के दक्षिणी छोर पर रामेश्वरम मंदिर है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रामायण के अनुसार, भगवान राम ने यहाँ रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। इसकी वास्तुकला भी विशिष्ट है।
79 डिग्री देशांतर
79 डिग्री देशांतर पर एक सीधी रेखा में इन मंदिरों का स्थान रहस्यमय है। ये मंदिर अत्यंत प्राचीन हैं, ये उस समय के हैं जब अक्षांश-देशांतर मापने की कोई तकनीक नहीं थी। फिर भी विभिन्न समयों और विभिन्न राजवंशों द्वारा निर्मित ये मंदिर एक पंक्ति में हैं, जो प्राचीन भारतीय योग और वास्तु विज्ञान की उन्नत समझ को दर्शाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह रेखा पृथ्वी की भू-चुंबकीय ऊर्जा से जुड़ी हो सकती है।