आखिर क्यों Kainchi Dham कहलाता है नीब करौली बाबा का आश्रम? यहां जानें इस जगह का इतिहास

भारत अपनी धार्मिक मान्यताओं और आस्था के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यहां कई मंदिर और तीर्थ स्थान हैं, जिनके दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं। उत्तराखंड में मौजूद नीब करौली बाबा का आश्रम (Kainchi Dham History) इन्हीं स्थानों में से एक है, जहां लगभग हर दिन बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए जाते हैं।इतना ही नहीं, देश-विदेश से कई प्रसिद्ध हस्तियां भी यहां बाबा का आशीर्वाद लेने आ चुकी हैं। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित यह आश्रम एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो 20वीं सदी के महान संत नीब करौली बाबा के लिए जाना जाता है। हालाँकि, इस आश्रम को कैंची धाम के नाम से भी जाना जाता है। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इस आश्रम को कैंची धाम क्यों कहा जाता है और इसका इतिहास और महत्व क्या है-
कैंची धाम एक प्रसिद्ध आश्रम है, जो नीब करौली बाबा के कारण जाना जाता है। दरअसल इसका नाम नीब करौरी आश्रम है, लेकिन आम बोलचाल में इसे नीम करौली कहा जाने लगा है। यह आश्रम नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर और भवाली से 9 किलोमीटर दूर स्थित है और इसका आश्रम 1960 के दशक में उस समय के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु नीब करोली बाबा द्वारा बनाया गया था। इस आश्रम का निर्माण 15 जून 1964 को नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba ashram significance) और उनके भक्तों द्वारा किया गया था।
बाबा को महाराज जी के नाम से भी जाना जाता था और कई लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं। इस मंदिर में नीब करौली बाबा के साथ ही हनुमान जी, राम-सीता समेत अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। वह हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे और उन्होंने अपने जीवनकाल में हनुमान जी के कई मंदिर बनवाए थे।
नीब करौली बाबा, जिन्हें उनके भक्त महाराजजी के नाम से जानते थे, का जन्म उत्तर प्रदेश (भारत) के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ था। उनका नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था और 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। हालांकि शादी के तुरंत बाद ही वे घर छोड़कर गुजरात चले गए और पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर घूमते रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए और लोगों को जीवन जीने का रास्ता दिखाया।
उन्होंने दो आश्रम भी बनवाए, एक उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कैंची में और दूसरा उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन में। उन्होंने अपनी महासमाधि के लिए वृंदावन को चुना। 10 सितम्बर को आगरा पहुंचने के बाद वे तुरंत वृंदावन के लिए रवाना हो गये, जहां 11 सितम्बर 1973 को उन्होंने महासमाधि ले ली।
नीब करौली बाबा के आश्रम को कैंची धाम कहा जाता है क्योंकि यह कैंची में स्थित है। उत्तराखंड सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार यह स्थान दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, जो एक दूसरे को काटकर कैंची का आकार बनाती हैं, इसलिए इसे कैंची धाम कहा जाता है। कैंची मंदिर के पास एक गुफा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां महाराजजी ध्यान और प्रार्थना किया करते थे।