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Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी को लगाए इस खास चीज का भोग, मां करेगी हर मनोकामना पूरी, वीडियो में देखें विधि, मंत्र भोग और आरती

 

आज शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि है. इसी दिन से दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है. इसके साथ ही नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दुर्गा मां के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सुख-समृद्धि में भी वृद्धि होती है।

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पुराणों के अनुसार देवी कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री थीं। इसीलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। दूसरी मान्यता यह है कि गोपियों ने भगवान कृष्ण को पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। तभी से कहा जाता है कि जो भी लड़की मां की पूजा करती है उसे उसका मनपसंद वर मिलता है। इसी क्रम में जानते हैं मां के छठे स्वरूप, उनकी पूजा विधि, मंत्र, आरती से लेकर भोग तक।

षष्ठी तिथि-

षष्ठी तिथि आरंभ: 8 अक्टूबर, मंगलवार सुबह 11:17 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त: 9 अक्टूबर, बुधवार दोपहर 12:14 बजे

माँ कात्यायनी का स्वरूप

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मां दुर्गा का कात्यायनी स्वरूप अत्यंत उज्ज्वल एवं कांतिमय है। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। माँ सिंह पर सवार हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं, जिनमें से ऊपरी दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है जबकि निचला हाथ वरमुद्रा में है। वहीं, बाएं तरफ के ऊपरी हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल-पुष्प है। ज्योतिष में बृहस्पति का संबंध इनसे माना जाता है।

मां कात्यायनी भोग

मां कात्यायनी को शहद या मीठे पत्ते चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है।

प्रिय फूल और रंग

देवी कात्यायनी का पसंदीदा रंग लाल है। पूजा में आपको मां कात्यायनी को लाल गुलाब या गुड़हल का फूल चढ़ाना चाहिए, इससे मां कात्यायनी प्रसन्न होंगी।

पौराणिक कथा

विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की आराधना करते हुए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। उन्होंने देवी के समक्ष अपनी इच्छा रखी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय बाद जब पृथ्वी पर महिषासुर नामक असुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश दिया, जिससे एक देवी प्रकट हुईं। सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने देवी की आराधना की और फिर उन्होंने अपनी पुत्री कात्यायनी को बुलाया। ये देवियाँ महिषासुर के विनाश के लिए ही अवतरित हुई थीं।

पूजा विधि

  • मां कात्यायनी की पूजा से पहले कलश पूजा का विधान है। कलश को भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है।
  • स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें।
  • अब गणेश जी को फूल, अक्षत आदि चढ़ाएं और तिलक लगाएं।
  • उन्हें मोदक का भोग लगाएं और विधि-विधान से पूजा करें।
  • इसके बाद आपको नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता की भी पूजा करनी चाहिए।
  • इसके बाद ही आपको माता कात्यानी की पूजा करनी चाहिए।
  • देवी कात्यायनी की पूजा करने के लिए एक हाथ में फूल लें और मां कात्यायनी का ध्यान करें।
  • इसके बाद माता को पुष्प अर्पित करें और अक्षत, कुमकुम और सिन्दूर अर्पित करें।
  • मां का आनंद लीजिए.
  • मां के सामने घी का दीपक भी जलाएं.
  •  पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें और अंत में मां की आरती करें।

पूजा मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

.द्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||

मां कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी। जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहां वरदाती नाम पुकारा।

कई नाम हैं, कई धाम हैं। यह स्थान भी तो सुखधाम है।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी। कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।

हर जगह उत्सव होते रहते। हर मंदिर में भक्त हैं कहते।

कात्यायनी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की।

झूठे मोह से छुड़ाने वाली। अपना नाम जपाने वाली।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो। ध्यान कात्यायनी का धरियो।

हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी।

जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे।