Samachar Nama
×

हवन करते समय क्यों बोलते हैं 'स्वाहा', जानकर हैरान हो जाएंगे आप

हवन करते समय क्यों बोलते हैं 'स्वाहा', जानकर हैरान हो जाएंगे आप

हिंदू धर्म में हवन एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है, जिसे घर में शांति और समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। हवन के दौरान हवन कुंड में हवन सामाग्री अर्पित करते वक्त लोग 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हवन के समय इस शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है? अगर नहीं, तो हम आपको इसके पीछे की धार्मिक और पौराणिक मान्यता के बारे में बताते हैं।

'स्वाहा' शब्द का अर्थ

हवन के दौरान जब कोई व्यक्ति हवन सामग्री अर्पित करता है, तो वह 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण करता है। इस शब्द का अर्थ है "सही रीति से पहुंचाना"। इसका मतलब है कि हम जो भी सामग्री हवन कुंड में अर्पित करते हैं, वह सही तरीके से और सुरक्षित रूप से देवताओं तक पहुंच जाए। यह शब्द हवन को सम्पूर्णता और शुद्धता प्रदान करने के लिए बोला जाता है।

पौराणिक मान्यता और 'स्वाहा' का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, 'स्वाहा' अग्नि देवता की अर्धांगिनी हैं। जब हवन किया जाता है, तो यह हवन सामाग्री केवल अग्नि देवता तक पहुंचाने के लिए 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण किया जाता है। कहा जाता है कि हवन तब तक सफल नहीं होता, जब तक देवता गण इसे ग्रहण न कर लें। 'स्वाहा' के माध्यम से ही देवता हवन को स्वीकार करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

स्वाहा की उत्पत्ति और उसका संबंध अग्नि देवता से

कहा जाता है कि 'स्वाहा' प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और इनका विवाह अग्नि देवता के साथ हुआ था। अग्नि देवता अपनी पत्नी 'स्वाहा' के जरिए ही हविष्य ग्रहण करते हैं। जब हवन का आयोजन होता है, तो हविष्य को स्वाहा के माध्यम से ही देवताओं तक पहुंचाया जाता है। इस प्रक्रिया के बिना हवन का पूर्णत: सफल होना संभव नहीं है।

स्वाहा शब्द का प्रयोग हवन के दौरान हविष्य को देवता तक सही तरीके से पहुंचाने के रूप में होता है। इसके माध्यम से अर्पित किया गया हर दान, हवन और आहुति देवताओं द्वारा स्वीकार की जाती है और आशीर्वाद के रूप में व्यक्ति के जीवन में शुभता और समृद्धि आती है।

स्वाहा का संबंध प्रकृति से

स्वाहा का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि वह प्रकृति की एक कला थीं, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आदेश पर हुआ था। इसके बाद ही स्वाहा ने हविष्य को ग्रहण करने और उसे देवताओं तक पहुंचाने का कार्य शुरू किया।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी स्वाहा को एक विशेष वरदान दिया था कि वह केवल उसी के माध्यम से हविष्य को ग्रहण कर पाएंगी। इस कारण से हवन में स्वाहा शब्द का प्रयोग अनिवार्य है। यदि इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता, तो हवन को अधूरा माना जाता है और वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाता।

'स्वाहा' शब्द के महत्व की समझ

हवन में 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक गहरी पौराणिक और आध्यात्मिक मान्यता का प्रतीक है। यह शब्द यह सुनिश्चित करता है कि जो भी अर्पित किया गया है, वह सही और शुद्ध रूप से देवताओं तक पहुंचे। साथ ही यह भी दिखाता है कि हवन का उद्देश्य केवल भौतिक लाभ नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता और संतुलन भी है।

हवन का यह पवित्र अनुष्ठान न केवल घर में शांति और समृद्धि लाता है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हर कार्य को सही भावना और शुद्धता के साथ किया जाना चाहिए। 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है।

निष्कर्ष

हवन में 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण मात्र एक शब्द नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक और पौराणिक मान्यता का प्रतीक है। इस शब्द के माध्यम से हविष्य को सही तरीके से देवताओं तक पहुंचाने का कार्य संपन्न होता है। यही कारण है कि हवन के दौरान इस शब्द का उच्चारण अनिवार्य होता है, ताकि हवन का उद्देश्य पूरा हो और व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और आशीर्वाद का वास हो।

Share this story

Tags