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 प्रयोग के लिए काटे जाते थे जिंदा इंसानों के अंग, शरीर में डाले जाते थे जानलेवा वायरस

ये है दुनिया की सबसे खतरनाक जेल, जहां एक दूसरे की जान ले लेते हैं

आज हम आपको एक ऐसी ही लैब के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे दुनिया की सबसे खतरनाक लैब माना जाता है। जिसके सामने चीन की प्रयोगशालाएं कुछ भी नहीं हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं यूनिट-731 नामक लैब की।दरअसल, जापानी सेना के जवानों ने वर्ष 1930 से 1945 के बीच चीन के पिंगफैंग जिले में एक लैब बनाई थी। जिसका नाम 'यूनिट 731' रखा गया। हालांकि चीन का इससे कोई संबंध नहीं था, लेकिन लैब में किए गए प्रयोग चीनी लोगों पर ही किए गए थे। यूनिट 731 प्रयोगशाला का उल्लेख जापानी सरकार के अभिलेखागार विभाग के पास रखे दस्तावेजों में भी किया गया है। हालाँकि, अब कई दस्तावेज जला दिए गए हैं।


कहा जाता है कि इस लैब में कई ऐसे दर्दनाक प्रयोग किए गए, जो मजबूत से मजबूत इंसान को भी डरा सकते हैं। इस लैब में जीवित मनुष्यों को यातना देने के लिए एक विशेष प्रयोग किया गया, जिसे फ्रॉस्टबाइट परीक्षण कहा जाता है। योशिमुरा हिसातो नामक वैज्ञानिक को यह प्रयोग बहुत पसंद आया। वह यह देखने के लिए प्रयोग करते थे कि शून्य से नीचे के तापमान का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसका परीक्षण करने के लिए एक व्यक्ति के हाथ और पैर ठंडे पानी में डुबोये गये। जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह सिकुड़ गया तो उसके हाथ-पैर गर्म पानी में डाल दिए गए। इस प्रक्रिया के दौरान हाथ-पैर फट जाते थे और पानी में लकड़ी के टूटने जैसी आवाज आती थी। इस जांच में कई लोगों की जान चली गई, लेकिन प्रयोग बंद नहीं किया गया।


आपको बता दें कि यूनिट 731 लैब में मारुता नाम की एक शाखा थी। इसका प्रयोग अत्यंत कष्टदायक था। इस शाखा में किये जा रहे प्रयोगों का उद्देश्य यह जानना था कि मानव शरीर कितनी यातनाएं सहन कर सकता है। इसके लिए व्यक्ति को बेहोश किए बिना उसके शरीर के प्रत्येक अंग को धीरे-धीरे काटा गया।


इसके अलावा इस प्रयोगशाला में कई अन्य ऐसे प्रयोग भी किए गए। एक अन्य प्रयोग में, हैजा या प्लेग के रोगाणुओं (वायरस) को जीवित मनुष्यों के अंदर डाला गया। इसके बाद संक्रमित व्यक्ति के शरीर का विच्छेदन किया गया और यह देखने का प्रयास किया गया कि इन बीमारियों ने शरीर के किस अंग को प्रभावित किया है। प्रयोग के लिए, संक्रमित व्यक्ति के मरने का इंतजार भी नहीं किया गया, बल्कि उसे जीवित रहते हुए ही टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया। इतनी यातनाओं के बाद भी अगर कोई व्यक्ति बच जाता तो उसे जिंदा जला दिया जाता था।

ऐसा माना जाता है कि इसके अधिकांश रिकार्ड जला दिए गए ताकि दुनिया को इस लैब के बारे में सच्चाई पता न चले। बताया जाता है कि इस शोध में शामिल लोग जापान की कई यूनिवर्सिटी या अच्छी जगहों पर काम करने लगे थे, लेकिन आज तक इस लैब से जुड़ा कोई चेहरा सामने नहीं आया है और न ही इसमें काम करने वाले किसी कर्मचारी की पहचान उजागर हुई है।

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