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’12 घंटे काम करो, वरना टीम बदल लो’, 3.8 लाख सैलरी वाले कर्मचारी ने Boss से कह दिया ‘NO’, मैसेज हुआ वायरल

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भारत में कॉर्पोरेट कल्चर और वर्कप्लेस एथिक्स को लेकर बहस लंबे समय से चल रही है, लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ एक मैसेज इस चर्चा को नए मोड़ पर ले आया है। सोशल डिस्कशन फोरम Reddit पर एक यूजर द्वारा शेयर किया गया स्क्रीनशॉट अब इंटरनेट पर छाया हुआ है। इस स्क्रीनशॉट में एक मैनेजर ने टेलीग्राम ग्रुप में टीम से 12 घंटे की शिफ्ट करने को कहा, और चेतावनी दी कि जो यह नहीं कर सकते, वे टीम बदल लें।

इस पोस्ट के वायरल होने के बाद भारत में वर्कप्लेस पर कर्मचारियों के शोषण, अधिकारों की अनदेखी और टॉक्सिक मैनेजमेंट पर एक बार फिर तीखी बहस छिड़ गई है।

क्या था वायरल मैसेज?

Reddit पर 'r/IndianWorkplace' नाम के सबरेडिट में एक यूजर ने पोस्ट डाली, जिसमें लिखा था —

“मैंने 12 घंटे की शिफ्ट करने से मना किया तो बॉस ने ये मैसेज ग्रुप में भेज दिया।”

इस मैसेज में बॉस ने हिंदी में सख्त लहजे में लिखा:

"टीम के सभी मेंबर ध्यान दें। मुझे 25 तारीख तक नाइट सपोर्ट चाहिए। काम के दौरान कोई गैप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। किसी को कोई समस्या है तो मुझे अभी बता दो। मैं सबकी सुनूंगा, लेकिन काम में कोई कमी नहीं चलेगी। बहुत ज्यादा प्रेशर लग रहा है तो बत्रा सर से बात करो या फिर दूसरी टीम में चले जाओ।"

इस मैसेज से साफ था कि कर्मचारी की मर्जी या स्वास्थ्य की कोई परवाह किए बिना, सिर्फ डेडलाइन पूरी करना ही लक्ष्य था।

3.8 लाख CTC और 12 घंटे की शिफ्ट?

पोस्ट में ये भी बताया गया कि यह कर्मचारी सालाना 3.8 लाख रुपये की सैलरी पा रहा था — यानी करीब 31,000 रुपये महीना। इतने वेतन में 12 घंटे की शिफ्ट की मांग ने लोगों को हैरान कर दिया।

यह मामला उस वर्ग से जुड़ा है जो मध्यवर्गीय बैकग्राउंड से आता है, और जहां नौकरी बचाए रखना ही प्राथमिकता होती है। यही कारण है कि ऐसे कर्मचारी, भले ही शोषण सहें, आवाज़ उठाने से हिचकते हैं।

सोशल मीडिया पर आया गुस्सा

पोस्ट वायरल होने के साथ ही Reddit पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। यूजर्स ने ऐसे टॉक्सिक मैनेजमेंट की कड़ी आलोचना की:

  • एक यूजर ने लिखा:

    “अगर आपके ऊपर घर की जिम्मेदारी नहीं है, तो फौरन ऐसी नौकरी को छोड़ दो। ये मानसिक और शारीरिक दोनों शोषण है।”

  • दूसरे ने कहा:

    “ऐसे पैसे का क्या फायदा जब आप अपनी जिंदगी को एन्जॉय ही न कर पाएं? 12 घंटे की शिफ्ट में ज़िंदगी कहां बचती है?”

  • किसी ने सुझाव दिया:

    “कुछ दिन बॉस के हिसाब से काम करो और फिर डॉक्टर से हेल्थ इश्यू का सर्टिफिकेट लेकर लंबी छुट्टी मारो।”

  • एक और गुस्साए यूजर ने लिखा:

    “12 घंटे की शिफ्ट, बिना ब्रेक, और तनख्वाह 30 हजार? ये नौकरी नहीं, गुलामी है।”

क्या कहता है कानून?

भारत में लेबर लॉ के अनुसार, किसी भी कर्मचारी से 8-9 घंटे से ज्यादा नियमित काम नहीं कराया जा सकता, जब तक कि ओवरटाइम की लिखित मंजूरी और अतिरिक्त भुगतान न हो।

Factories Act 1948 और Shops and Establishments Act जैसे कानून कर्मचारी हितों की रक्षा के लिए बने हैं, लेकिन छोटे और निजी क्षेत्र की कंपनियों में इनका पालन अक्सर नहीं होता।

कर्मचारियों की चुप्पी क्यों?

भारत में ज्यादातर कर्मचारी जॉब सिक्योरिटी को लेकर डरे रहते हैं। खासकर छोटे शहरों या टियर-2 कंपनियों में, जहां विकल्प सीमित हैं, वहां लोग शोषण सहते हैं पर शिकायत नहीं करते। इसके पीछे वजहें हैं:

  • कानूनी जानकारी की कमी

  • HR की निष्क्रियता

  • बेरोजगारी का डर

  • परिवारिक दबाव और आर्थिक जिम्मेदारियां

कंपनियों की मानसिकता पर सवाल

इस वायरल पोस्ट ने एक बार फिर कंपनियों की उस सोच को उजागर किया है, जिसमें कर्मचारियों को "काम करने की मशीन" समझा जाता है। कर्मचारी की मानसिक और शारीरिक सेहत, उसका संतुलन, और काम की गुणवत्ता – इन बातों का कोई मोल नहीं होता।

वर्क-लाइफ बैलेंस जैसे शब्द महज HR पॉलिसी बुक्स में रह गए हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।

इस पोस्ट से क्या सीख?

  1. संवाद जरूरी है: कर्मचारी और प्रबंधन के बीच पारदर्शिता और संवाद जरूरी है। हर समस्या का समाधान तानाशाही से नहीं होता।

  2. हां कहने की मजबूरी न पालें: ‘ना’ कहना सीखें। वर्कप्लेस में आत्म-सम्मान बनाए रखना जरूरी है।

  3. जागरूक रहें: अपने अधिकारों के बारे में जानें और जरूरत पड़ने पर उचित कदम उठाएं।

  4. वर्कप्लेस टॉक्सिसिटी को एक्सपोज़ करें: सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों के जरिए टॉक्सिक व्यवहार को उजागर करें, ताकि बदलाव की शुरूआत हो सके।

निष्कर्ष: बदलाव की ज़रूरत है

यह वायरल मैसेज केवल एक कर्मचारी की समस्या नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सोच पर सवाल है। ऐसे मैसेज हमें याद दिलाते हैं कि भारत में अब भी बड़ी संख्या में कर्मचारी अनुचित मांगों, अवमानना, और शोषण का शिकार हो रहे हैं।

बदलाव तभी आएगा जब हम चुप रहना छोड़ेंगे। जब कर्मचारी अपने हक के लिए खड़े होंगे, और जब कंपनियां भी प्रॉफिट से पहले मानवता को प्राथमिकता देंगी।

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