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आवारा कुत्तों को खाना खिलाने की मिली इस महिला को सजा, 3.50 लाख का लगा जुर्माना

मुंबई, देश की आर्थिक राजधानी, जहां इंसान और जानवरों का सह-अस्तित्व एक आम बात है, वहां हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। कांदीवली ईस्ट स्थित निसर्ग हैवेन को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाली एक महिला को आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के चलते सोसाइटी ने 3.60 लाख रुपये का भारी जुर्माना थमा दिया है।

इस पूरे मामले ने स्थानीय स्तर पर बहस छेड़ दी है—क्या जानवरों के प्रति करुणा दिखाना अपराध है, या फिर सोसाइटी के नियमों की अनदेखी?

महिला का नाम और आरोप

इस विवाद का केंद्र हैं नेहा दतवानी, जो कि निसर्ग हैवेन सोसाइटी में रहती हैं। नेहा बीते कई महीनों से आवारा कुत्तों को खाना खिलाने का काम कर रही थीं। उन्होंने यह कार्य अपने मानवीय और सामाजिक कर्तव्य के तहत शुरू किया था। लेकिन सोसाइटी के कुछ सदस्यों को यह बात रास नहीं आई।

उनका तर्क है कि इससे सोसाइटी में कुत्तों की संख्या बढ़ गई, जिससे बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगा। यही वजह थी कि पिछले साल मई में हुई सोसाइटी की एक बैठक में नेहा पर पहली बार ₹2500 का जुर्माना लगाया गया।

कैसे पहुंची बात लाखों के जुर्माने तक?

नेहा का कहना है कि उन्होंने जुर्माना देने से मना कर दिया, क्योंकि वे इसे अनुचित मानती हैं। इसके बाद सोसाइटी ने इस राशि को हर महीने के मेंटेनेंस बिल में जोड़ना शुरू कर दिया। नेहा का कहना है कि अब तक यह राशि बढ़कर ₹3.60 लाख हो चुकी है, जिसमें 21% वार्षिक ब्याज भी जोड़ा गया है।

सोसाइटी की ओर से उन्हें यह राशि फरवरी महीने के मेंटेनेंस बिल में जोड़कर भेजी गई थी। हालांकि, नेहा ने मेंटेनेंस की रकम समय पर अदा कर दी, लेकिन जुर्माने की राशि देने से साफ इंकार कर दिया।

नेहा का पक्ष

नेहा दतवानी का कहना है कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया। उनका उद्देश्य केवल भूखे जानवरों को खाना देना था। वह बताती हैं, "मैंने हमेशा यह ध्यान रखा कि कुत्तों को सोसाइटी के बाहर ही खाना दूं, लेकिन फिर भी मुझे निशाना बनाया गया।"

उनका मानना है कि यह जुर्माना एक मानवीय कार्य पर दंड जैसा है। नेहा ने अब इस मामले में एक समाजसेवी संगठन से संपर्क किया है और न्याय की गुहार लगाई है।

क्या कहते हैं सोसाइटी के सदस्य?

सोसाइटी के कुछ सदस्यों का कहना है कि नेहा की वजह से सोसाइटी के भीतर आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “बच्चे खेलने से डरते हैं, बुजुर्गों के गिरने का डर बना रहता है। कई बार कुत्तों ने लोगों पर भौंकना और दौड़ना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में हम अपने परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे।”

उनका यह भी कहना है कि सोसाइटी में रहने वाले सभी लोगों के लिए नियम समान होने चाहिए और किसी की व्यक्तिगत पसंद पूरी सोसाइटी पर थोपी नहीं जा सकती।

मामला अब समाजिक और कानूनी बहस का विषय

यह मामला अब केवल एक सोसाइटी विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह मानवता बनाम व्यवस्था की बहस का रूप ले चुका है। एक तरफ नेहा जैसी महिला हैं, जो जानवरों की देखभाल को नैतिक जिम्मेदारी मानती हैं, वहीं दूसरी ओर सोसाइटी के सदस्य हैं जो सुरक्षा और नियमों का पालन प्राथमिकता मानते हैं।

कई लोग सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। कुछ ने नेहा के पक्ष में आवाज़ उठाई है तो कुछ का मानना है कि सोसाइटी के नियम सर्वोपरि होने चाहिए।

जानवरों के प्रति करुणा बनाम सोसाइटी के नियम

भारत में पशु कल्याण कानून के तहत किसी भी जानवर को खाना खिलाना अपराध नहीं है, लेकिन हाउसिंग सोसाइटीज़ अपने निजी नियम बना सकती हैं। हालांकि, ये नियम भी संविधान और मानवाधिकार के दायरे में ही होने चाहिए।

पशु अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि जानवरों को खाना देना न सिर्फ कानूनी है बल्कि नैतिक भी है। लेकिन यह काम यदि सार्वजनिक जगह या निजी परिसरों में हो रहा है, तो वहां के नियमों का पालन जरूरी है।

क्या कोई समाधान निकल सकता है?

ऐसे मामलों में समाधान का सबसे अच्छा तरीका है—संवाद और सहयोग। अगर सोसाइटी और नेहा दोनों एक-दूसरे की समस्याओं को समझें और आपसी सहमति से समय और स्थान तय करें जहां जानवरों को खाना दिया जा सके, तो यह विवाद टल सकता है।

साथ ही, बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) या अन्य संबंधित प्रशासनिक निकायों को भी ऐसे विवादों में मध्यस्थता करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे मामले कानूनी लड़ाइयों तक न पहुंचें।

निष्कर्ष

यह मामला यह दिखाता है कि कैसे एक छोटे-से मानवीय कार्य को लेकर बड़ी सामाजिक और कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। जहां नेहा जैसे लोग समाज में करुणा और दया का उदाहरण पेश करते हैं, वहीं नियमों की अवहेलना एक बड़े समुदाय के लिए समस्या बन सकती है।

जरूरत है कि इस तरह के मामलों में संवेदनशीलता, कानूनी समझ और संवाद को प्राथमिकता दी जाए, ताकि न सिर्फ इंसान, बल्कि बेजुबान जानवरों के अधिकार भी सुरक्षित रह सकें।

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