राजस्थान के इस 2000 साल पुराने मंदिर रात को क्यों नहीं रुकता कोई, वीडियो डर की सच्ची कहानी जान सहम जाएंगे आप

जयपुर जिले में भगवान महादेव के कई प्रमुख मंदिर हैं और सभी मंदिरों की अपनी अद्भुत कहानियां हैं। ऐसे में आमेर की पहाड़ी पर स्थित भूतेश्वर नाथ महादेव मंदिर की भी बड़ी अनोखी कहानी है। महाशिवरात्रि के दिन सुबह 6 बजे से रात 11-12 बजे तक इस मंदिर पर जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। जानकारों का कहना है कि आमेर की पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर चर्चा में रहता है। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी मांगा जाता है, यहां के भूतेश्वर नाथ महादेव उसे पूरा करते हैं। यहां आमेर, जयपुर, हरियाणा और दिल्ली से लोग दर्शन करने आते हैं। यह अपनी तरह का अनूठा मंदिर है। सावन के महीने में यहां भारी भीड़ रहती है। करीब 30 साल से लगातार इस मंदिर में दर्शन करने आ रहे दयाशंकर का कहना है कि इस मंदिर की महिमा बड़ी अनोखी है। इस मंदिर की स्थापना कब हुई, इसकी किसी को जानकारी नहीं है।
चारों तरफ जंगल है
इस मंदिर के महंत सोनू पारीक का कहना है कि आमेर के चारों तरफ जंगल के बीच स्थित इस मंदिर की बड़ी महिमा है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना जयपुर शहर बसने से पहले हुई थी। पहले यह मंदिर पहाड़ी के बीच में अकेला था। धीरे-धीरे लोगों को इस मंदिर के बारे में पता चला और यहां भारी भीड़ जुटने लगी। पहाड़ों और जंगलों के बीच यह यहां का एकमात्र मंदिर है। इसकी संरचना को देखकर ऐसा लगता है कि मंदिर का मंडप और गुंबद 17वीं शताब्दी में ही बनाए गए थे। इसकी वास्तुकला उस समय बनी इमारतों जैसी लगती है। यहां के लोग कहते हैं कि धीरे-धीरे इसमें और भी कई निर्माण किए गए। मंदिर की खासियत यह है कि यह गहरे और घने जंगल के बीच में स्थापित है। लोग पहाड़ों पर ट्रैकिंग करके भी यहां पहुंचते हैं और अब यहां भारी भीड़ जुटने लगी है।
यह कहां स्थित है और इसकी कहानी क्या है?
यह मंदिर आमेर में नाहरगढ़ अभयारण्य से पांच किलोमीटर अंदर जाने पर पहाड़ी के बीच में स्थित है। इस मंदिर की कहानी बहुत ही अद्भुत है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका इतिहास कोई नहीं जानता। कहा जाता है कि यह मंदिर जयपुर और आमेर से पहले का है। यह मंदिर जंगल में अकेला है। इसके आसपास कोई बस्ती नहीं है। कहा जाता है कि पहले इस मंदिर में पूजा नहीं होती थी। रात में यहां कोई नहीं रुकता था। इसी बीच एक संत आए और इस मंदिर में पूजा करने लगे। उसके बाद संत ने जिंदा समाधि ले ली। उनकी समाधि आज भी वहीं है। अब यहां काफी भीड़ रहती है और पूजा-अर्चना जोर-शोर से की जाती है।