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भगवान शिव शरीर पर क्यों लगाते हैं भस्म? जानिए इसके पीछे छिपा गहरा आध्यात्मिक रहस्य

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भगवान शिव को हम "भूतों के अधिपति", "कालों के काल" और "तपस्वियों के स्वामी" के रूप में जानते हैं। उनका स्वरूप जितना रहस्यमयी है, उतनी ही गहराई उनके प्रत्येक अंग-संस्कार में छिपी है। भगवान शिव के शरीर पर जो भस्म (राख) लगी होती है, वह केवल सजावट नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक अत्यंत गंभीर, धार्मिक और आध्यात्मिक कारण जुड़ा हुआ है।

भस्म – शिव के वैराग्य और मृत्युबोध का प्रतीक

भगवान शिव का पूरा जीवन एक तपस्वी का जीवन है। वह माया, मोह, और सांसारिक सुखों से ऊपर उठे हुए हैं। उनके शरीर पर लगी भस्म इस वैराग्य का प्रतीक है। यह बताती है कि शरीर नश्वर है, और अंत में यही शरीर भस्म (राख) में बदल जाता है।

शिव का यह रूप हर जीव को यह संदेश देता है कि –
"जिस शरीर पर तुम घमंड करते हो, वह एक दिन भस्म बन जाएगा, इसलिए मोह को त्यागो और आत्मज्ञान की ओर बढ़ो।"

भस्म लगाने की पौराणिक कथा

शिव पुराण और अन्य शास्त्रों में एक कथा मिलती है कि एक बार भगवान शिव श्मशान भूमि में ध्यानमग्न हो गए। वहीं उन्होंने मृत शरीरों की राख अपने शरीर पर मल ली। जब पार्वती जी ने इसका कारण पूछा, तो शिव ने कहा:

"यह भस्म मुझे मृत्यु के सत्य की याद दिलाती है। जब तक यह शरीर भस्म न हो, आत्मा मुक्त नहीं होती।"

इसका एक और अर्थ यह है कि शिव हर रूप में — जीवन और मृत्यु — दोनों में समाहित हैं।

भस्म और तीन रेखाएं – त्रिपुंड का रहस्य

भगवान शिव अपने ललाट पर भस्म से तीन रेखाएं बनाते हैं, जिसे त्रिपुंड कहते हैं। इसका भी गहरा आध्यात्मिक अर्थ है:

  1. पहली रेखा – तमोगुण (अज्ञान) का प्रतीक

  2. दूसरी रेखा – रजोगुण (आसक्ति) का प्रतीक

  3. तीसरी रेखा – सत्त्वगुण (शुद्धता) का प्रतीक

शिव इन तीनों गुणों के पार हैं, इसलिए भस्म के माध्यम से वह इस त्रिगुणात्मक संसार से अपनी निर्लिप्तता को दर्शाते हैं।

भस्म का वैज्ञानिक और योगिक महत्व

भस्म सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि योग और आयुर्वेद के अनुसार भी बहुत महत्वपूर्ण है।
– भस्म में शीतलता होती है, जिससे ध्यान लगाने वाले साधक का मन स्थिर रहता है।
– श्मशान की राख का शरीर पर लेप करने से अहंकार का नाश होता है।
– यह शरीर के चक्रों को संतुलित करने में भी मदद करता है, इसलिए योगी और साधु इसे प्रयोग में लाते हैं।

निष्कर्ष

भगवान शिव द्वारा शरीर पर भस्म लगाना कोई साधारण परंपरा नहीं, बल्कि यह एक दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश है – मृत्यु को समझो, मोह को छोड़ो और आत्मा की शुद्धि की ओर बढ़ो। भस्म हमें यह सिखाती है कि जो कुछ भी भौतिक है, वह नाशवान है, परंतु आत्मा और भक्ति अमर हैं।

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