
आप रंगा और बिल्ला के नामों से परिचित होंगे, दोनों को मौत की सजा सुनाई गई क्योंकि उन्होंने एक चौंकाने वाला अपराध किया था। इन दोनों कैदियों को दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में फांसी दी गई, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब बिल्ली को फांसी दी गई तो कुछ ही देर में उसकी सांसें बंद हो गईं, लेकिन रंगा के बारे में कहा जाता है कि फांसी लगने के दो घंटे बाद तक उसकी नब्ज धड़कती रही।
वर्ष 1978 में 16 वर्षीय गीता चोपड़ा और उनके 14 वर्षीय भाई संजय चोपड़ा (Geeta and Sanjay Chopra Kidnap Case) को दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के युववाणी कार्यक्रम में शामिल होना था। इसके लिए उन्होंने रास्ते में एक कार से लिफ्ट ली लेकिन वे अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सके। जिस कार से उन्होंने लिफ्ट ली थी, उसे रंगा और बिल्ला नाम के बदमाश चला रहे थे। रंगा और बिल्ला ने इन दोनों बच्चों के परिवारों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई थी। लेकिन जब मामला बढ़ा तो उन्हें पता चला कि ये दोनों बच्चे एक नेवी अफसर के हैं।
दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों की पुलिस ने इन बच्चों को ढूंढने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। लेकिन वे इन बच्चों को नहीं बचा सके। बाद में जब पुलिस ने इन दोनों अपराधियों को पकड़ा तो उन्होंने पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में बताया कि सबसे पहले उन्होंने संजय चोपड़ा की हत्या की, उसके बाद उन्होंने गीता के साथ बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी। जब इन दोनों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सामने आई तो सभी हैरान रह गए क्योंकि गीता चोपड़ा के शरीर पर पांच घाव थे जबकि संजय के शरीर पर कुल 21 घाव थे।
इस जघन्य अपराध के लिए लगभग आठ वर्षों तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद दोनों को 7 अप्रैल 1979 को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। वहीं जब दोनों के पास सारे कानूनी विकल्प खत्म हो गए तो आखिरकार 31 जनवरी 1982 को दोनों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।तिहाड़ जेल के पूर्व प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने ब्लैक वारंट में एक निबंध लिखा है जिसमें इन दोनों की फांसी से जुड़ी कहानी लिखी गई है। अपनी किताब ब्लैक वारंट में सुनील ने लिखा है कि दोनों को फांसी दिए जाने के बाद सभी ने मान लिया कि रंगा-बिल्ला मर गए हैं। लेकिन जब उन्होंने इसकी पुष्टि के लिए दोनों की नाड़ी जांची तो दो घंटे बाद भी रंगा की नाड़ी चल रही थी। इसके बाद एक पुलिसकर्मी को भेजकर रंगा के पैर खींचवाए गए, जिसके बाद उसकी मौत हो गई।