
कई बार लोग जीवन की तमाम परेशानियों के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। न केवल मनुष्य बल्कि जानवर भी ऐसा ही करते हैं। यह जानकर आप जरूर हैरान हो जाएंगे कि आखिर जानवर ऐसा क्यों करते हैं? आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां इंसान ही नहीं बल्कि सभी पक्षी आत्महत्या करने आते हैं। यह स्थान और कहीं नहीं बल्कि भारत में ही स्थित है। इसीलिए इस स्थान को पक्षी आत्महत्या बिंदु के नाम से जाना जाता है। दरअसल, असम में एक ऐसी जगह है जहां हजारों पक्षी आत्महत्या करने पहुंचते हैं। आपको बता दें कि पशु-पक्षी अक्सर अपने स्वभाव के अनुसार स्थान बदलते रहते हैं।
गर्मियों में रहने के आदी पक्षियों की तरह, सर्दियों के मौसम में वे उन स्थानों पर चले जाते हैं जहां गर्मी होती है। सर्दियों में रहने वाले पक्षी उन स्थानों पर जाते हैं जहां ठंड होती है। लेकिन असम के दीमा हासो जिले की पहाड़ियों में स्थित जतिंगा घाटी में दूर-दूर से कई पक्षी आत्महत्या करने यहां पहुंचते हैं। इसीलिए इस स्थान को पक्षियों का आत्महत्या स्थल कहा जाने लगा है। आपको बता दें कि हर साल सितंबर महीने में जतिंगा गांव पक्षियों की आत्महत्या के कारण सुर्खियों में रहता है। न केवल स्थानीय पक्षी बल्कि प्रवासी पक्षी भी इस स्थान पर पहुंचकर आत्महत्या कर लेते हैं। इसी कारण जतिंगा गांव को बहुत रहस्यमय माना जाता है।
इस आत्मघाती दौड़ में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की लगभग 40 प्रजातियां शामिल हैं। प्राकृतिक कारणों से जतिंगा गांव नौ महीने तक बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहता है। इतना ही नहीं, जतिंगा घाटी में रात के समय प्रवेश पर भी प्रतिबंध है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि चुंबकीय बल इस रहस्यमयी घटना का कारण हो सकता है। आपको बता दें कि जब आर्द्र और कोहरे भरे मौसम में हवाएं तेज चलती हैं तो पक्षी रात के अंधेरे में रोशनी के आसपास उड़ने लगते हैं। कम रोशनी के कारण वे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, जिसके कारण वे किसी इमारत, पेड़ या वाहनों से टकरा जाते हैं। ऐसे में जटिंगा गांव में शाम के समय वाहन चलाने पर रोक लगा दी गई है।
ताकि कोई रोशनी न हो. हालांकि, इसके बावजूद पक्षियों की मौत का सिलसिला नहीं रुका। जतिंगा गांव के लोगों का मानना है कि इसके पीछे कोई रहस्यमयी शक्ति है। गांव के लोगों का कहना है कि हवाओं में कुछ अलौकिक शक्ति होती है, जिसके कारण पक्षी ऐसा करते हैं। उनका यह भी मानना है कि इस दौरान मानव आबादी का बाहर निकलना खतरनाक हो सकता है। सितम्बर-अक्टूबर के दौरान जतिंगा की सड़कें शाम को पूरी तरह सुनसान हो जाती हैं।
कहा जाता है कि यहां पक्षियों के आत्महत्या करने का सिलसिला वर्ष 1910 से चला आ रहा है। लेकिन बाहरी दुनिया को इसके बारे में 1957 में पता चला। जब वर्ष 1957 में पक्षी विज्ञानी ई.पी.जी किसी काम से जतिंगा पहुंचे। इस दौरान उन्होंने स्वयं इस घटना को देखा और अपनी पुस्तक ‘द वाइल्डलाइफ ऑफ इंडिया’ में इसका उल्लेख किया।