सनातन धर्म के वो 8 अमर योद्धा जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं, जानिए कौन हैं वो 8 चिरंजीवी जो कलियुग के अंत तक रहेंगे अमर

चिरंजीवी वह होते हैं जो अमर होते हैं। यानी जिनका कभी अंत नहीं होता। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार धरती पर 8 ऐसे चिरंजीवी मौजूद हैं जिनका अंत कभी नहीं होगा। इनमें से कुछ को भगवान ने अमरता का वरदान दिया है, जबकि कुछ श्राप के कारण अमर हो गए हैं। आइए जानते हैं कौन हैं ये चिरंजीवी।
माता सीता ने प्रसन्न होकर दिया था वरदान
हनुमान जी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया है। जब हनुमान जी भगवान श्री राम का संदेश लेकर अशोक वाटिका में सीताजी के पास गए थे, तो सीताजी ने राम के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण को देखकर उन्हें यह वरदान दिया था। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी आज भी धरती पर रहते हैं और भगवान राम की भक्ति में लीन रहते हैं।
अश्वत्थामा को श्री कृष्ण से मिला श्राप
कुछ लोगों को श्राप के कारण अमरता मिली थी। इसी लिस्ट में अश्वत्थामा का नाम आता है। महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य की हत्या का बदला लेने के लिए अन्याय का सहारा लिया था। उसने पांडवों के सोते हुए पुत्रों को मार डाला था। जिसके बाद श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि दुनिया के अंत तक वह घावों से लथपथ शरीर के साथ भटकता रहेगा और उसके घावों से हमेशा खून बहता रहेगा। माना जाता है कि इसी श्राप के कारण अश्वत्थामा आज भी धरती पर भटक रहे हैं।
भगवान वामन राजा बलि से प्रसन्न हुए थे
राजा बलि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के वंशज हैं। जब विष्णु जी भगवान वामन का वेश धारण कर राजा बलि की परीक्षा लेने आए तो राजा बलि ने भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था। माना जाता है कि आज भी राजा बलि पाताल में निवास कर रहे हैं।
श्री राम ने विभीषण को सौंपी थी सोने की लंका
भगवान राम ने रावण के सबसे छोटे भाई और राम के परम भक्त विभीषण को अमरता का वरदान दिया था। रावण के वध के बाद श्री राम ने विभीषण को सोने की लंका सौंप दी थी और उन्हें अमरता का वरदान दिया था। माना जाता है कि आज भी विभीषण धरती पर मौजूद हैं।
शिव के परम भक्त हैं परशुराम
परशुराम को भगवान विष्णु का दसवां अवतार माना जाता है। वे भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। उनकी भक्ति को देखकर स्वयं महादेव ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था। परशुराम जी का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है।
कृपाचार्य एक महान ऋषि थे
कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु हैं। महाभारत के युद्ध में ऋषि कृपाचार्य ने कौरवों की ओर से सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनका नाम सबसे तपस्वी ऋषियों में शामिल है। अपनी तपस्या के कारण ही उन्हें अमरता का वरदान मिला था।
महाभारत के रचयिता वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) के रचयिता हैं। वे सत्यवती और ऋषि पराशर के पुत्र हैं। उन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की है। महाभारत जैसे विस्तृत ग्रंथ की रचना भी वेदव्यास ने ही की है। उन्हें अमरता का वरदान भी प्राप्त है।
ऋषि मार्कंडेय जिन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की
ऋषि मार्कंडेय भी 8 चिरंजीवियों में से एक हैं। वे भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। शिव के अत्यंत शक्तिशाली महामृत्युंजय मंत्र की रचना भी ऋषि मार्कंडेय ने ही की थी। वे अल्पायु के साथ पैदा हुए थे। लेकिन यमराज से उनके प्राण बचाने के लिए स्वयं भगवान शिव ने अवतार लिया था। इसके साथ ही महादेव ने उन्हें अमरता का वरदान भी दिया था।