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इस मंदिर में है दूसरी दुनिया में जाने का दरवाज़ा! आज तक अनसुलझा है पाताल की नदी का रहस्य!

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दुनिया में कई ऐसे प्राचीन मंदिर और स्थल हैं जो अपने रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। इन स्थलों की गुत्थियों को आधुनिक विज्ञान भी आज तक पूरी तरह सुलझा नहीं पाया है। ऐसा ही एक रहस्यमयी मंदिर है मेक्सिको के तेओतिहुआकान शहर में स्थित — क्वेटज़ाल्कोआटल मंदिर, जिसे पंख वाले सर्प का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर अपने रहस्यमयी पिरामिडनुमा ढांचे, तरल पारे की नदी और पाताल लोक के द्वार से जुड़ी मान्यताओं के कारण दुनियाभर के शोधकर्ताओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

1800 साल पुराना रहस्य

क्वेटज़ाल्कोआटल मंदिर लगभग 1800–1900 साल पुराना माना जाता है और यह मेसोअमेरिकन सभ्यता का महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र था। यह पिरामिडनुमा मंदिर तेओतिहुआकान सभ्यता की अद्वितीय स्थापत्य कला और रहस्यमयी धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है। इसका नाम क्वेटज़ाल्कोआटल, एक देवता के नाम पर रखा गया है, जिसे पंखों वाले सर्प के रूप में जाना जाता है और जिसे सृजन, मृत्यु और पुनर्जन्म से जोड़ा जाता है।

पाताल की ओर खुलती सुरंग

साल 2003 में पुरातत्वविद् डॉ. सर्जियो गोमेज़ ने मंदिर के नीचे एक गुप्त सुरंग का पता लगाया। इस सुरंग की लंबाई लगभग 300 फुट थी, जो मंदिर के गहरे गर्भ तक जाती थी। छह साल तक चली खुदाई के बाद, इस सुरंग के अंत में तीन रहस्यमयी कक्ष मिले। लेकिन जो सबसे चौंकाने वाली खोज हुई, वह थी — तरल पारा।

तरल पारा: पाताल की नदी?

2015 में हुए शोध में इन कक्षों में बड़ी मात्रा में तरल पारा पाया गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पारा पाताल लोक की नदी या झील का प्रतीक हो सकता है। डॉ. रोज़मेरी जॉयस और डॉ. एनाबेथ हेड्रिक जैसे विशेषज्ञों ने कहा है कि तरल पारा एक चमकदार दर्पण जैसा प्रतीत होता है, जो आत्मा की गहराई और दूसरे संसार से संपर्क का माध्यम हो सकता है। मध्य अमेरिका के कुछ अन्य प्राचीन स्थलों में भी पारे की उपस्थिति पाई गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह एक धार्मिक अनुष्ठानिक परंपरा रही हो सकती है।

3000 से अधिक अनुष्ठानिक वस्तुएं

इस खुदाई में केवल तरल पारा ही नहीं, बल्कि जेड की मूर्तियां, जगुआर के अवशेष, शंखों की नक्काशी, रबर की गेंदें और कई अन्य वस्तुएं मिलीं। ये सब वस्तुएं लगभग 60 फुट गहराई में पाए गए मंदिर के कमरों से निकाली गईं। अब तक की खोजों में 3000 से अधिक अनुष्ठानिक वस्तुएं मिल चुकी हैं, जिससे यह साफ है कि यह मंदिर साधारण पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक अत्यंत रहस्यमय और शक्तिशाली अनुष्ठानिक केंद्र था।

मानव बलि और देवताओं की उत्पत्ति

1980 के दशक में पिरामिड के नीचे 100 से अधिक मानव अवशेष भी पाए गए थे। माना जाता है कि एज़्टेक लोग यहां मानव बलि चढ़ाते थे और उनका विश्वास था कि यहीं पर देवताओं की उत्पत्ति हुई थी। यह पिरामिड, आकार में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पिरामिड है और हर साल 45 लाख से अधिक पर्यटक इसे देखने आते हैं। 1987 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

क्या है असली रहस्य?

अब तक हुए सभी शोध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि क्वेटज़ाल्कोआटल मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक धार्मिक और अलौकिक द्वार था — जो शायद दूसरी दुनिया या पाताल लोक तक पहुंचने का माध्यम हो सकता है। हालांकि, तरल पारे और सुरंग की बनावट से जुड़ी पूरी सच्चाई अब भी अनसुलझी है। वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों की टीमें आज भी इस रहस्य को सुलझाने में जुटी हैं, लेकिन यह मंदिर अब भी रहस्य का पर्याय बना हुआ है।

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