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ये है दुनिया का सबसे खतरनाक सीरियल किलर, पांच साल 300 लोगों को उतारा था मौत के घाट

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दुनिया के हर देश में अस्पताल को लोगों की जान बचाने का स्थान माना जाता है। डॉक्टर और नर्स को भगवान का रूप समझा जाता है, जो हर दिन लोगों की जिंदगी के लिए लड़ते हैं। लेकिन जर्मनी में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने न केवल मेडिकल प्रोफेशन बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया। यह मामला एक मेल नर्स से जुड़ा है, जिसने इलाज के नाम पर पांच साल के अंदर करीब 300 मरीजों को मौत के घाट उतार दिया

ओल्डनबर्ग अस्पताल से शुरू हुआ मौत का खेल

यह कहानी है नील्स होगेल नामक मेल नर्स की, जिसने 2000 से 2005 के बीच जर्मनी के ओल्डनबर्ग और लमेनहोर्स्ट अस्पतालों में काम करते हुए धीरे-धीरे दर्जनों मरीजों की जान ली। शुरुआत में वह एक सामान्य नर्स की तरह ही मरीजों की देखभाल करता था। लेकिन बाद में अस्पताल प्रशासन ने नोटिस किया कि जिन मरीजों की देखरेख होगेल कर रहा था, उनकी मौत की दर सामान्य से कहीं ज्यादा है।

दवा का ओवरडोज बना हत्या का हथियार

जांच में सामने आया कि नील्स होगेल मरीजों को जानबूझकर ऐसी दवाओं का ओवरडोज देता था, जिससे उनकी हालत गंभीर हो जाती थी और फिर वे दम तोड़ देते थे। कभी वह हृदय गति नियंत्रित करने वाली दवाएं देता तो कभी सीधे इंजेक्शन से विषैले रसायन शरीर में पहुंचा देता।

उसका मकसद यह था कि वह जानबूझकर मरीजों को गंभीर हालत में लाकर खुद ही "हीरो" बनकर उन्हें बचाने की कोशिश करे। यदि वह सफल होता, तो उसे तारीफ मिलती, और अगर असफल होता, तो मरीज मर जाता।

130 शवों की खुदाई, फिर खुला राक्षसी सच

जब मरीजों की संदिग्ध मौतों की संख्या बढ़ने लगी, तो पुलिस ने व्यापक जांच शुरू की। अधिकारियों ने जर्मनी, पोलैंड और तुर्की में 130 शवों की खुदाई करवाई ताकि फोरेंसिक जांच की जा सके। यह जांच कई सालों तक चली और अंततः पता चला कि इन शवों में से कई के शरीर में दवाओं का घातक ओवरडोज मौजूद था।

अब तक की सबसे भयानक मेडिकल सीरियल किलिंग

होगेल के खिलाफ जब अदालत में मामला चला, तो उसने 43 लोगों को मारने की बात खुद स्वीकार की, लेकिन 52 अन्य मौतों पर उसने इनकार भी नहीं किया। हालांकि जांचकर्ताओं का मानना है कि वास्तविक संख्या 300 से अधिक हो सकती है, जिससे यह केस यूरोप की सबसे बड़ी मेडिकल सीरियल किलिंग बन गया है।

आजीवन कारावास की सजा

होगेल को शुरुआत में दो मरीजों की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। बाद में जब अन्य मामलों में सबूत सामने आए, तो उस पर चार अन्य हत्याओं का मुकदमा और चलाया गया। वर्तमान में वह जेल में बंद है और माना जा रहा है कि उसे जीवनभर बाहर आने का मौका नहीं मिलेगा।

हत्याओं का कोई स्पष्ट मकसद नहीं

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन हत्याओं का कोई स्पष्ट उद्देश्य सामने नहीं आया। न तो होगेल ने कभी धन के लालच में ऐसा किया और न ही उसने किसी व्यक्तिगत दुश्मनी का हवाला दिया। कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि वह "हीरो सिंड्रोम" से ग्रस्त था—जिसमें व्यक्ति खुद संकट पैदा कर, फिर उसे हल करने की कोशिश करता है, ताकि खुद को श्रेष्ठ साबित कर सके।

अस्पतालों की लापरवाही भी बनी कारण

जांच में यह भी सामने आया कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही भी इस भयावह घटना के लिए जिम्मेदार रही। कई बार मरीजों की असामान्य मौतों पर ध्यान नहीं दिया गया, न ही समय रहते अलर्ट जारी किए गए। यही वजह थी कि होगेल लगातार अस्पताल बदलता रहा और अपने अपराधों को अंजाम देता रहा।

मेडिकल सिस्टम पर सवाल

इस घटना ने पूरी दुनिया के मेडिकल सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर डॉक्टर और नर्स को 'भगवान' का दर्जा दिया जाता है, वहीं जब यही पद किसी मानसिक विकृति से ग्रस्त व्यक्ति के हाथ लग जाए, तो वह जानलेवा बन सकता है।

निष्कर्ष:

नील्स होगेल की यह कहानी एक चेतावनी है—केवल डिग्री और पेशे से कोई महान नहीं बनता। इंसानियत, नैतिकता और संवेदनशीलता ही किसी को 'देवदूत' बनाती है। यह घटना इस बात की गवाही देती है कि ज़रा सी लापरवाही कितनी बड़ी त्रासदी में बदल सकती है। जरूरी है कि अस्पतालों में कर्मचारियों की नियमित मानसिक जांच की जाए और प्रशासन सतर्क रहे, ताकि भविष्य में 'होगेल' जैसी घटनाएं दोबारा ना हों।

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