इस जगह है ऐसे सिक्कों का चलन जिन्हें चोरी नहीं किया जा सकता, हैरान कर देने वाली है वजह

मुद्रा का इतिहास जितना रोचक है, उतना ही विविधतापूर्ण भी रहा है। मानव सभ्यता के विकास के साथ ही व्यापारिक जरूरतों ने करेंसी की अवधारणा को जन्म दिया। शुरुआत में जब कोई औपचारिक मुद्रा नहीं थी, तब रत्नों, कौड़ियों, मोतियों आदि का प्रयोग किया जाता था। फिर आए धातु के सिक्के – पहले सोने-चांदी, फिर तांबे, कांसे और अंत में अल्यूमिनियम तक। लेकिन इस तकनीकी दौर में भी दुनिया में एक ऐसा स्थान है जहां आज भी करेंसी के रूप में पत्थरों का इस्तेमाल होता है।
2. यप द्वीप: जहां पत्थर ही धन है
प्रशांत महासागर के माइक्रोनेशिया क्षेत्र में स्थित है यप द्वीप। यह एक छोटा सा द्वीप है जिसकी आबादी महज़ 11 हजार के आसपास है। लेकिन इस द्वीप की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां पत्थरों के सिक्कों का चलन होता है। इन्हें 'राई स्टोन' कहा जाता है। इन पत्थरों का आकार 7 सेंटीमीटर से लेकर 3.6 मीटर तक हो सकता है और ये दिखने में बड़े गोल चक्के जैसे होते हैं जिनमें बीच में एक छेद होता है।
यप में पहुंचते ही यहां के हवाई अड्डे के बाहर इन पत्थरों की कतारें देखी जा सकती हैं। पूरा द्वीप इन ऐतिहासिक करेंसी से भरा हुआ नजर आता है। इनका इतिहास और महत्व इतना गहरा है कि हर पत्थर के पीछे कोई न कोई कहानी होती है।
3. क्यों नहीं चोरी होते ये सिक्के
इन पत्थर के सिक्कों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें चोरी नहीं किया जा सकता। वजह भी उतनी ही दिलचस्प है। ये पत्थर इतने भारी और विशाल होते हैं कि उन्हें चुपचाप उठाकर ले जाना नामुमकिन होता है। इसके अलावा, यप की सामाजिक व्यवस्था और लोगों का आपसी विश्वास भी इस व्यवस्था को मजबूत बनाता है।
यहां हर पत्थर की एक कहानी, एक मालिक और एक सामाजिक मान्यता होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक बड़ा पत्थर खरीदता है लेकिन उसे कहीं और स्थापित करता है, तो भी पूरा समुदाय जानता है कि वह पत्थर किसका है। इस तरह भले ही वह पत्थर किसी एक जगह पर पड़ा हो, लेकिन उसकी मालिकाना हक की जानकारी पूरे समाज को होती है। इसी कारण इन्हें चोरी करना व्यर्थ है – क्योंकि कोई दूसरा व्यक्ति उस पत्थर का दावा नहीं कर सकता।
4. कैसे बनते थे ये पत्थर के सिक्के
स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यप के लोग सैकड़ों साल पहले डोंगियों में बैठकर लगभग 400 किलोमीटर दूर पलाऊ द्वीप जाया करते थे। वहां से वे विशेष प्रकार की चट्टानें काटकर लाते थे और फिर उन्हें गोल आकार में तराशते थे। इन पत्थरों को नावों में लादकर यप लाया जाता था और बाद में स्थानीय सरदारों के माध्यम से इनका वितरण होता था।
यप के सरदार इन पत्थरों को एक सामाजिक क्रिया के तहत नामित करते थे। कुछ पत्थरों को वे अपने पास रखते थे, जबकि बाकी पत्थर उन्हें लाने वाले को दिए जाते थे। यह न सिर्फ एक लेन-देन की प्रक्रिया थी बल्कि सामाजिक सम्मान का प्रतीक भी था।
5. आज भी कायम है परंपरा
हालांकि अब यप में आधुनिक मुद्रा का भी उपयोग होता है, लेकिन राई स्टोन का महत्व अभी भी बना हुआ है। ये पत्थर रोजमर्रा के लेन-देन में तो इस्तेमाल नहीं होते, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में इनकी अहम भूमिका होती है। जैसे माफीनामे के समय, शादी में दहेज के रूप में या फिर परिवारों के बीच सम्मान प्रकट करने के लिए इनका आदान-प्रदान होता है।
हर परिवार अपनी अगली पीढ़ी को इन पत्थरों का इतिहास और उससे जुड़ी कहानियां सुनाता है। यह परंपरा आज भी जिंदा है और यप की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।