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देश का ऐसा अनोखा मंदिर जहां राधा के साथ नहीं रूकमणि के साथ पूजे जाते हैं भगवान श्री कृष्ण, जानें क्यों ?

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित श्री सांवलिया सेठ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि व्यापारियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक अद्भुत केंद्र भी है। भगवान श्रीकृष्ण के काले रूप के रूप में पूजे जाने वाले सांवलिया सेठ को "कृष्ण के व्यापारी...
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राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित श्री सांवलिया सेठ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि व्यापारियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक अद्भुत केंद्र भी है। भगवान श्रीकृष्ण के काले रूप के रूप में पूजे जाने वाले सांवलिया सेठ को "कृष्ण के व्यापारी रूप" के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर भक्तों के बीच चमत्कारी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ श्रद्धा से की गई प्रार्थनाएँ अवश्य पूरी होती हैं।

मंदिर का इतिहास

श्री सांवलिया सेठ मंदिर का इतिहास 19वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि सन् 1840 में भादसौड़ा गांव के पास कुछ चरवाहों को खुदाई के दौरान तीन मूर्तियाँ मिलीं – श्रीकृष्ण, बलराम और एक अन्य रूप। इन मूर्तियों को गाँव वालों ने पूजा के लिए स्थापित किया। इनमें से सबसे प्रसिद्ध मूर्ति "सांवलिया सेठ" के नाम से जानी जाती है। बाद में यहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया जो आज देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक मुख्य तीर्थ बन चुका है।

धार्मिक महत्त्व

सांवलिया सेठ को "काली मूरत वाले श्रीकृष्ण" के रूप में पूजा जाता है। भक्तों का मानना है कि जो भी सच्चे मन से यहाँ प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामनाएँ जरूर पूरी होती हैं। खासकर व्यापारी वर्ग में सांवलिया सेठ की ख्याति बहुत अधिक है। व्यापार शुरू करने से पहले और किसी बड़े सौदे से पहले लोग यहाँ आकर आशीर्वाद लेना शुभ मानते हैं।

प्रमुख उत्सव और मेलें

जन्माष्टमी, एकादशी, और अन्नकूट जैसे पर्वों पर यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इन पर्वों के दौरान मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भजन-कीर्तन, रासलीला और धार्मिक आयोजन इस स्थान को अत्यंत दिव्य और भक्तिमय बना देते हैं।

दान और चढ़ावा

श्री सांवलिया सेठ मंदिर को भारत के सबसे धनी मंदिरों में से एक माना जाता है। यहाँ रोज़ाना करोड़ों रुपए का दान चढ़ाया जाता है, जिसमें नकद, सोना, चांदी और अन्य बहुमूल्य वस्तुएं शामिल होती हैं। इस धन का उपयोग मंदिर प्रबंधन द्वारा सामाजिक कार्यों, जैसे – अस्पताल, स्कूल और धर्मशालाओं के संचालन में किया जाता है।

कैसे पहुँचे

मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के मांडफिया गाँव में स्थित है, जो उदयपुर से लगभग 85 किलोमीटर और चित्तौड़गढ़ से 40 किलोमीटर दूर है। यहाँ तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है और हवाई अड्डा उदयपुर में स्थित है।

निष्कर्ष

श्री सांवलिया सेठ मंदिर न केवल एक आस्था का स्थल है, बल्कि यह श्रद्धा, समर्पण और सामाजिक सेवा का प्रतीक भी है। यहाँ आकर भक्तों को एक अलौकिक ऊर्जा और संतोष की अनुभूति होती है। यदि आप राजस्थान की धार्मिक यात्रा पर हैं, तो यह स्थान अवश्य देखने योग्य है।

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