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देर रात तक खुलता है ये सरकारी स्कूल, वजह जानकर रह जाएंगे दंग

सरकारी स्कूलों को आपने अब तक केवल दिन के समय खुलते देखा होगा, लेकिन महाराष्ट्र के एक गांव में एक ऐसा अनोखा स्कूल है, जो रात के समय भी बच्चों को शिक्षा देने के लिए खुला रहता है। इस स्कूल में न सिर्फ पढ़ाई होती है, बल्कि योगाभ्यास और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कराई जाती है। अपनी इस खास व्यवस्था के कारण यह स्कूल आज पूरे महाराष्ट्र में मिसाल बन गया है।  यह स्कूल महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के पालडोह गांव में स्थित है। जिला परिषद द्वारा संचालित यह स्कूल हर दिन तड़के सुबह 5 बजे खुलता है और देर शाम 8 बजे तक चलता है। खास बात यह है कि इस लंबे समय तक स्कूल खुला रहने के बावजूद बच्चे पूरे उत्साह और समर्पण के साथ पढ़ाई करते हैं।  पढ़ाई से लेकर योग और प्रतियोगी परीक्षाओं तक इस स्कूल में पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाई जाती है। बच्चों को केवल सामान्य शिक्षा ही नहीं दी जाती, बल्कि योग और मानसिक विकास के लिए विभिन्न गतिविधियों में भी शामिल किया जाता है। इसके अलावा रविवार और छुट्टी के दिनों में सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिताएं और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कराई जाती है।  बच्चों को परीक्षा देने का अनुभव दिलाने के लिए स्कूल में नियमित रूप से टेस्ट कराए जाते हैं। इन टेस्ट के पेपर भी खुद स्कूल के छात्र-छात्राएं बनाते हैं। इससे उनकी सोचने और प्रश्न तैयार करने की क्षमता का भी विकास होता है।  संसाधनों की कमी के बावजूद मजबूत हौसले इस स्कूल में मात्र दो कमरे हैं, जबकि स्टूडेंट्स की संख्या 123 है। जगह की कमी के कारण कई बार कक्षाएं पेड़ों के नीचे या सड़क के किनारे लगानी पड़ती हैं। हालांकि, इससे बच्चों और शिक्षकों का उत्साह कम नहीं होता। वे हर परिस्थिति में पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।  गांव वालों ने भी इस स्कूल को बेहतर बनाने के लिए पहल की है। पालडोह गांव के निवासियों ने मिलकर दो लाख रुपये इकट्ठा किए और स्कूल प्रशासन को सौंपे ताकि स्कूल के लिए नए कमरे बनवाए जा सकें। यह उदाहरण दिखाता है कि जब पूरा गांव शिक्षा को प्राथमिकता देता है, तो संसाधनों की कमी भी बड़ी बाधा नहीं बनती।  शिक्षा के लिए सामूहिक जिम्मेदारी स्कूल के प्रिंसिपल राजेंद्र परतेकी बताते हैं कि शिक्षक जब घर चले जाते हैं, तब भी बच्चे स्कूल में पढ़ाई करते हैं। रात के समय पढ़ाई की व्यवस्था बनाए रखने के लिए गांव के लोगों को जिम्मेदारी दी गई है। गांव के कुछ बुजुर्ग और पढ़े-लिखे युवा स्कूल में रहकर बच्चों की पढ़ाई पर नजर रखते हैं और उन्हें सहयोग भी करते हैं।  इस पहल से बच्चों में अनुशासन, आत्मनिर्भरता और पढ़ाई के प्रति गंभीरता विकसित हुई है। पालडोह गांव का यह मॉडल यह बताता है कि यदि समाज शिक्षा के लिए सच में समर्पित हो जाए, तो किसी भी तरह की कमी रास्ते में रोड़ा नहीं बन सकती।  एक प्रेरणा बनता स्कूल पालडोह गांव का यह स्कूल केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा का स्रोत भी बन चुका है। यह मॉडल अन्य गांवों और स्कूलों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि किस तरह सीमित साधनों में भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है।  जहां एक ओर बड़े-बड़े शहरों में महंगे स्कूलों के बावजूद शिक्षा का स्तर चिंता का विषय बनता जा रहा है, वहीं पालडोह गांव का यह सरकारी स्कूल उम्मीद की एक नयी किरण बनकर उभरा है।

सरकारी स्कूलों को आपने अब तक केवल दिन के समय खुलते देखा होगा, लेकिन महाराष्ट्र के एक गांव में एक ऐसा अनोखा स्कूल है, जो रात के समय भी बच्चों को शिक्षा देने के लिए खुला रहता है। इस स्कूल में न सिर्फ पढ़ाई होती है, बल्कि योगाभ्यास और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कराई जाती है। अपनी इस खास व्यवस्था के कारण यह स्कूल आज पूरे महाराष्ट्र में मिसाल बन गया है।

यह स्कूल महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के पालडोह गांव में स्थित है। जिला परिषद द्वारा संचालित यह स्कूल हर दिन तड़के सुबह 5 बजे खुलता है और देर शाम 8 बजे तक चलता है। खास बात यह है कि इस लंबे समय तक स्कूल खुला रहने के बावजूद बच्चे पूरे उत्साह और समर्पण के साथ पढ़ाई करते हैं।

पढ़ाई से लेकर योग और प्रतियोगी परीक्षाओं तक

इस स्कूल में पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाई जाती है। बच्चों को केवल सामान्य शिक्षा ही नहीं दी जाती, बल्कि योग और मानसिक विकास के लिए विभिन्न गतिविधियों में भी शामिल किया जाता है। इसके अलावा रविवार और छुट्टी के दिनों में सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिताएं और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कराई जाती है।

बच्चों को परीक्षा देने का अनुभव दिलाने के लिए स्कूल में नियमित रूप से टेस्ट कराए जाते हैं। इन टेस्ट के पेपर भी खुद स्कूल के छात्र-छात्राएं बनाते हैं। इससे उनकी सोचने और प्रश्न तैयार करने की क्षमता का भी विकास होता है।

संसाधनों की कमी के बावजूद मजबूत हौसले

इस स्कूल में मात्र दो कमरे हैं, जबकि स्टूडेंट्स की संख्या 123 है। जगह की कमी के कारण कई बार कक्षाएं पेड़ों के नीचे या सड़क के किनारे लगानी पड़ती हैं। हालांकि, इससे बच्चों और शिक्षकों का उत्साह कम नहीं होता। वे हर परिस्थिति में पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।

गांव वालों ने भी इस स्कूल को बेहतर बनाने के लिए पहल की है। पालडोह गांव के निवासियों ने मिलकर दो लाख रुपये इकट्ठा किए और स्कूल प्रशासन को सौंपे ताकि स्कूल के लिए नए कमरे बनवाए जा सकें। यह उदाहरण दिखाता है कि जब पूरा गांव शिक्षा को प्राथमिकता देता है, तो संसाधनों की कमी भी बड़ी बाधा नहीं बनती।

शिक्षा के लिए सामूहिक जिम्मेदारी

स्कूल के प्रिंसिपल राजेंद्र परतेकी बताते हैं कि शिक्षक जब घर चले जाते हैं, तब भी बच्चे स्कूल में पढ़ाई करते हैं। रात के समय पढ़ाई की व्यवस्था बनाए रखने के लिए गांव के लोगों को जिम्मेदारी दी गई है। गांव के कुछ बुजुर्ग और पढ़े-लिखे युवा स्कूल में रहकर बच्चों की पढ़ाई पर नजर रखते हैं और उन्हें सहयोग भी करते हैं।

इस पहल से बच्चों में अनुशासन, आत्मनिर्भरता और पढ़ाई के प्रति गंभीरता विकसित हुई है। पालडोह गांव का यह मॉडल यह बताता है कि यदि समाज शिक्षा के लिए सच में समर्पित हो जाए, तो किसी भी तरह की कमी रास्ते में रोड़ा नहीं बन सकती।

एक प्रेरणा बनता स्कूल

पालडोह गांव का यह स्कूल केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा का स्रोत भी बन चुका है। यह मॉडल अन्य गांवों और स्कूलों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि किस तरह सीमित साधनों में भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है।

जहां एक ओर बड़े-बड़े शहरों में महंगे स्कूलों के बावजूद शिक्षा का स्तर चिंता का विषय बनता जा रहा है, वहीं पालडोह गांव का यह सरकारी स्कूल उम्मीद की एक नयी किरण बनकर उभरा है।

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