सार्वजनिक जगहों पर पैर फैलाकर बैठने वाले पुरुषों को ऐसे सबक सिखाती है ये लड़की

आपने अकसर देखा होगा कि बस, मेट्रो या ट्रेन जैसे सार्वजनिक स्थानों पर कुछ पुरुष इस तरह बैठते हैं कि उनके दोनों पैर बेतरतीब तरीके से फैले होते हैं। इस हरकत को अंग्रेज़ी में “मैनस्प्रेडिंग (Manspreading)” कहा जाता है। यह न केवल दूसरों के लिए असुविधा पैदा करता है बल्कि एक किस्म का लैंगिक अतिक्रमण भी बन जाता है, खासतौर पर तब जब महिलाएं या बुजुर्ग व्यक्ति उनके पास बैठने की कोशिश करें।
इस प्रवृत्ति के खिलाफ दुनियाभर में धीरे-धीरे विरोध के स्वर उठने लगे हैं। लेकिन रूस की एक युवती ने इसे रोकने के लिए जो तरीका अपनाया है, वह न सिर्फ चर्चा का विषय बना हुआ है बल्कि इंटरनेट पर वायरल भी हो रहा है।
कौन हैं अन्ना दोवगाल्युक?
अन्ना दोवगाल्युक (Anna Dovgalyuk) रूस के सेंट पीटर्सबर्ग की रहने वाली 20 वर्षीय छात्रा और एक सक्रिय सोशल एक्टिविस्ट हैं। अन्ना महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने सार्वजनिक परिवहन में मैनस्प्रेडिंग करने वाले पुरुषों के खिलाफ ऐसा तरीका निकाला है जो जितना चौंकाने वाला है, उतना ही प्रभावशाली भी।
मैनस्प्रेडिंग के खिलाफ अनोखा विरोध
अन्ना का मानना है कि सार्वजनिक परिवहन में मर्दों द्वारा इस तरह से बैठना केवल जगह घेरना नहीं, बल्कि दूसरों की निजता और आराम का अतिक्रमण है। वह कहती हैं कि यह प्रवृत्ति पुरुषों की उस मानसिकता को दर्शाती है जिसमें वे खुद को सार्वजनिक स्थानों पर दूसरों से ऊपर मानते हैं।
इसी के खिलाफ उन्होंने एक वीडियो प्रोजेक्ट शुरू किया जिसमें वे ऐसे पुरुषों पर एक खास तरह का मिश्रण डालती हैं। इस मिश्रण में 30 लीटर पानी और 6 लीटर ब्लीच होता है। उनका दावा है कि यह ब्लीच सामान्य घरेलू उपयोग के मुकाबले 30 गुना ज़्यादा ताकतवर होता है।
विरोध या हमला?
अन्ना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले इस ब्लीच मिश्रण को वह सीधे पुरुषों की जांघों के पास यानी ग्रोन एरिया पर डालती हैं। उनका उद्देश्य स्पष्ट है — उन्हें शर्मिंदा करके यह संदेश देना कि ऐसी हरकतों का समाज में कोई स्थान नहीं है। उनके अनुसार यह एक सांकेतिक कार्रवाई है, जो हर उस व्यक्ति के लिए है जिसने कभी मर्दानगी के दिखावे के कारण सार्वजनिक स्थानों पर अपमान महसूस किया हो।
अन्ना कहती हैं,
“यह वीडियो उन सभी पुरुषों को समर्पित है जो यह सोचते हैं कि टांगें फैलाकर बैठना उनका अधिकार है। मैं चाहती हूं कि लोग समझें कि मर्दों का व्यवहार किस बॉडी पार्ट से संचालित होता है।”
उनकी यह टिप्पणी कई लोगों के लिए असहज हो सकती है, लेकिन उनका उद्देश्य समाज में व्याप्त लैंगिक मानसिकता पर करारा प्रहार करना है।
पहले भी कर चुकी हैं चर्चा में आने वाले विरोध
यह पहली बार नहीं है जब अन्ना किसी सामाजिक मुद्दे को लेकर विवादास्पद ढंग से सामने आई हैं। इससे पहले उन्होंने रूस में स्कर्ट उठाने की घटनाओं के विरोध में भी एक अलग तरीका अपनाया था। उस वक्त उन्होंने मेट्रो में खुद अपनी स्कर्ट उठाकर विरोध जताया था ताकि लोग यह समझ सकें कि महिलाओं की निजता में दखल देना कितना असहज हो सकता है।
वीडियो को लेकर विवाद
हालांकि अन्ना के इस वीडियो को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। कुछ रूसी न्यूज एजेंसियों का दावा है कि यह वीडियो असली नहीं, बल्कि एक स्क्रिप्टेड एक्ट है और इसमें पैसे देकर एक्टर्स को शामिल किया गया था। लेकिन अन्ना इस दावे को पूरी तरह नकारती हैं। उनका कहना है कि,
“मेरे सभी प्रोजेक्ट रियल हैं। मैं किसी भी तरह के ऑनलाइन स्टंट में यकीन नहीं करती। यह सब सच है और इसके पीछे कोई स्क्रिप्ट नहीं है।”
कानूनी पहलू और प्रतिक्रिया
लोगों का सवाल है कि क्या अन्ना की इस हरकत पर किसी ने शिकायत की है? इस पर अन्ना का कहना है कि अभी तक किसी पुरुष ने पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवाई है।
उनके शब्दों में,
“मुझे नहीं लगता कि कोई अपनी जीन्स के खराब हो जाने पर पुलिस के पास जाएगा। वे जानते हैं कि उन्होंने गलती की है और इसीलिए चुप रहते हैं।”
हालांकि कई कानूनी विशेषज्ञ इसे असहमति के साथ देखते हैं। उनका कहना है कि सार्वजनिक स्थान पर किसी पर केमिकल फेंकना, भले ही वह ब्लीच हो, हमला या उत्पीड़न की श्रेणी में आ सकता है। इसके गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
समाज की सोच पर सवाल
अन्ना के इस अभियान ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या महिलाओं को विरोध जताने के लिए इसी तरह के उग्र तरीके अपनाने पड़ते हैं? और क्या ऐसे तरीकों से समाज की सोच में बदलाव आ सकता है?
जहां कुछ लोग अन्ना की सराहना कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे अत्यधिक प्रतिक्रियावादी और अस्वीकार्य तरीका मानते हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने एक लंबे समय से अनदेखी की जा रही समस्या को बहस के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है।
निष्कर्ष: बदलाव के लिए असहज होना ज़रूरी?
अन्ना दोवगाल्युक का विरोध भले ही उग्र और असहज करने वाला लगे, लेकिन उनका मकसद समाज में एक गंभीर लेकिन अक्सर अनदेखी की जाने वाली समस्या की ओर ध्यान खींचना है। मैनस्प्रेडिंग केवल एक शारीरिक मुद्रा नहीं, बल्कि एक मानसिकता की अभिव्यक्ति है – जिसमें पुरुष सार्वजनिक स्थानों को अपने 'अधिकार क्षेत्र' के रूप में देखते हैं।
यदि यह असहज विरोध समाज को सोचने पर मजबूर करता है, तो शायद यह जरूरी भी था। क्योंकि बदलाव अक्सर वहीं से शुरू होता है, जहां लोगों को सबसे ज़्यादा झटका लगता है।