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पत्नियों से दुखी पुरुषों की मदद करता है ये आश्रम, कौए की पूजा करके निकाला जाता है समाधान

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भारत में अक्सर महिलाओं के अधिकारों और उनके शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले संगठन और संस्थान चर्चा में रहते हैं। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि समाज में कुछ पुरुष ऐसे भी हैं जो घरेलू हिंसा और पत्नियों की प्रताड़ना के शिकार होते हैं, लेकिन उनकी आवाज़ कहीं सुनाई नहीं देती। ऐसे पुरुषों के लिए एक आशा की किरण बनकर उभरा है महाराष्ट्र का एक अनोखा आश्रम, जो इन ‘पत्नी पीड़ित’ पुरुषों की मदद करता है।

यह आश्रम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है और इसका नाम सुनते ही लोगों की दिलचस्पी बढ़ जाती है। यह कोई आम आश्रम नहीं, बल्कि उन पुरुषों का सहारा है जो अपनी पत्नियों की मारपीट, मानसिक प्रताड़ना, झूठे मुकदमों और अन्य घरेलू झगड़ों के कारण अकेलेपन और अवसाद की स्थिति में पहुंच चुके होते हैं।

कहां है ये अनोखा आश्रम?

यह अनोखा आश्रम औरंगाबाद से लगभग 12 किलोमीटर दूर शिरडी-मुंबई हाईवे पर स्थित है। दूर से देखने पर यह एक साधारण मकान जैसा ही लगता है, लेकिन जैसे ही आप इसके अंदर कदम रखते हैं, तो यहां का माहौल कुछ अलग ही अनुभव कराता है। यहां न तो कोई धार्मिक प्रवचन होते हैं और न ही कोई पारंपरिक पूजा-पाठ, बल्कि यहां होता है कानूनी सलाह, मानसिक परामर्श और भावनात्मक सहारा

आश्रम की अनोखी शुरुआत

इस आश्रम की नींव पत्नी पीड़ित पुरुषों ने ही रखी है। इसकी शुरुआत करने वाले व्यक्ति का नाम है भारत फुलारे, जिन्होंने अपनी 1200 स्क्वेयर फीट जमीन पर इस आश्रम के लिए तीन कमरे तैयार किए हैं। भारत फुलारे स्वयं भी एक समय पर पत्नी की प्रताड़ना झेल चुके हैं और इसी कारण उन्होंने यह ठान लिया कि वो ऐसे ही अन्य पीड़ितों की मदद करेंगे।

आश्रम में क्या होता है?

इस आश्रम में प्रताड़ित पुरुषों को सिर्फ आश्रय ही नहीं, बल्कि पूरी कानूनी सहायता और काउंसलिंग भी दी जाती है। सप्ताह के शनिवार और रविवार को यहां सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक काउंसलिंग सेशन चलते हैं। यहां अब तक 500 से ज्यादा पीड़ित पुरुष सलाह ले चुके हैं।

आश्रम में पीड़ितों की वकीलों की तरह पूरी केस फाइल तैयार की जाती है—जिसमें उनके बयान, गवाहों की जानकारी, साक्ष्य और FIR जैसे दस्तावेज एकत्रित किए जाते हैं। इस कानूनी प्रक्रिया में पीड़ितों को आगे बढ़ने का मार्गदर्शन दिया जाता है, जिससे वे अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकें।

आश्रम की अनोखी मान्यताएं

इस आश्रम की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां एक थर्माकोल से बना कौआ रखा गया है, जिसकी हर दिन सुबह और शाम को पूजा की जाती है। आश्रम के सदस्य बताते हैं कि, “मादा कौआ अंडा देकर उड़ जाती है और नर कौआ चूजों की परवरिश करता है, ठीक वैसे ही जैसे कई पतियों को घर और बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है, जब उनकी पत्नियां उन्हें छोड़ देती हैं या उन्हें प्रताड़ित करती हैं।”

इस प्रतीकात्मक पूजा का उद्देश्य पुरुषों को यह एहसास कराना है कि वे अकेले नहीं हैं और उनकी स्थिति समाज में अब पहचानी जा रही है।

आश्रम में दिनचर्या

आश्रम में रहने वाले लोग स्वावलंबी जीवन जीते हैं। वे अपना खाना खुद पकाते हैं और आपसी सहयोग से आश्रम का पूरा खर्चा उठाते हैं। यहां जो भी व्यक्ति कानूनी सलाह लेने आता है, उसे खिचड़ी बनाकर खिलाई जाती है। यह परंपरा सिर्फ भोजन देने की नहीं, बल्कि पीड़ित को सम्मान और अपनापन देने की एक कोशिश है।

आश्रम में रहने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी काम में दक्ष है—कोई सिलाई करता है, कोई ड्राइविंग, कोई लेखन, तो कोई कानूनी मदद में सहायता करता है। यही सामूहिकता इस आश्रम को मजबूती देती है।

और बढ़ रही है लोकप्रियता

शुरुआत में इस आश्रम में सिर्फ औरंगाबाद और उसके आस-पास के लोग आया करते थे, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों तक फैल चुकी है। दूर-दराज के लोग भी यहां आकर कानूनी सलाह लेते हैं और कुछ तो कुछ दिन यहां ठहरकर अपना मानसिक संतुलन फिर से पाने की कोशिश करते हैं।

क्यों जरूरी है ऐसे आश्रम?

भारत में जब भी घरेलू हिंसा की बात होती है, तो अक्सर पुरुषों को दोषी और महिलाओं को पीड़ित मान लिया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि कई पुरुष भी मानसिक, आर्थिक और शारीरिक हिंसा के शिकार होते हैं, खासकर तब जब पत्नियां झूठे केस लगाकर उन्हें जेल भिजवाने की धमकी देती हैं।

ऐसे में ये आश्रम उन पुरुषों के लिए सहारा और सुरक्षा की जगह बन गया है, जिन्हें समाज से कोई मदद नहीं मिलती। यहां न सिर्फ उन्हें कानूनी सलाह दी जाती है, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मविश्वास भी लौटाया जाता है

निष्कर्ष

महाराष्ट्र का यह ‘पत्नी पीड़ित आश्रम’ एक ऐसी जगह है जहां समाज के उस वर्ग को आवाज़ दी जाती है जिसकी तकलीफें अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। यह आश्रम हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में सभी पीड़ितों के लिए बराबर की जगह होनी चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।

अगर इसी तरह पूरे देश में इस सोच को अपनाया जाए, तो हम एक जेंडर न्यूट्रल और इंसाफ पसंद समाज की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।

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