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एक पिलर पर टिका है ये अद्भत मंदिर, कोई नहीं जान पाया आज तक इसका रहस्य

हवा में झूलते एक पिलर पर टिका है ये अद्भत मंदिर, कोई नहीं जान पाया आज तक इसका रहस्य

हमारा देश प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यही कारण है कि यहां हजारों मंदिर स्थित हैं। ये सभी मंदिर प्राचीन काल से ही यहां मौजूद हैं और इनमें से कुछ मंदिर तो ऐसे रहस्यों से घिरे हैं जिनके बारे में जानकर कोई भी हैरान हो सकता है। आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो हवा में लटका हुआ है और एक खंभे पर टिका हुआ है। जिसका रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया। दरअसल, हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित एक रहस्यमयी और प्राचीन लेपाक्षी मंदिर की। जिसके बारे में प्रत्यक्षदर्शियों का मानना ​​है कि इस मंदिर में एक विशाल स्तंभ सैकड़ों वर्षों से हवा में लटका हुआ है।

आपको बता दें कि बेंगलुरु से करीब 122 किलोमीटर दूर अनंतपुर जिले का लेपाक्षी मंदिर पूरी दुनिया में 'हैंगिंग पिलर मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में कुल 70 स्तंभ हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के क्रूर रूप वीरभद्र की मूर्ति स्थापित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दक्ष के यज्ञ के बाद वीरभद्र महाराज अस्तित्व में आए। भगवान वीरभद्र के अलावा मंदिर में भगवान शिव के अन्य रूपों, अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणामूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर की मूर्तियां भी हैं। यहां स्थापित देवी को भद्रकाली कहा जाता है। लेपाक्षी मंदिर के स्तंभ को आकाश स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें एक खंभा जमीन से एक इंच ऊपर उठा हुआ है। कहा जाता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों ने इस रहस्य को जानने के कई प्रयास किए, लेकिन उन्हें इस काम में सफलता नहीं मिली।

आपको बता दें कि यहां आने वाले श्रद्धालु इस स्तंभ के नीचे कुछ कपड़ा डालकर दूसरी ओर से निकालने का प्रयास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस प्रयास में सफल होता है उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। कहा जाता है कि झूलते स्तंभ का रहस्य जानने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने वर्ष 1902 में इस मंदिर के झूलते स्तंभ का रहस्य समझने की काफी कोशिश की थी। उसने हवा में झूलते खंभों पर हथौड़े से प्रहार किया। इसके कारण करीब 25 फीट दूर स्थित कुछ स्तंभों पर दरारें आ गईं, जिससे पता चला कि मंदिर का पूरा भार इसी झूलते स्तंभ पर टिका हुआ था। लेकिन अंत तक वह झूलते खंभों के रहस्य को समझ नहीं पाए और इसे प्रकृति का चमत्कार मानकर हार मान ली।

आपको बता दें कि यह मंदिर कर्नाटक के कुर्मासलेम की पहाड़ियों में स्थित है और कछुए के आकार में बना हुआ है। यहां स्थापित शिलालेखों से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों विरुपन्ना और विरन्ना ने करवाया था, जो विजयनगर के राजा के लिए काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण महर्षि अगस्त्य ने करवाया था। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में इस मंदिर के संदर्भ में उल्लेख है कि माता सीता की रक्षा के लिए जटायु इसी स्थान पर रावण से युद्ध में घायल हुए थे।

जब भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए इस स्थान से गुजरे तो उन्होंने जटायु को बेहोश अवस्था में पाया। श्री राम ने जटायु को अपने हाथ में लिया और कहा, ‘उठो, पक्षीराज।’ तेलुगु में इसे पक्षी कहते हैं। तब से इसका नाम लेपाक्षी पड़ गया। मंदिर परिसर में एक बड़ा पदचिह्न भी है, जिसे त्रेता युग का प्रमाण कहा जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह पैर श्री राम का है तो कुछ लोग माता सीता का।

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