विजय स्तम्भ की सीढ़ियों पर आज भी सुनाई देती है वीरांगनाओं की दर्दभरी खौफनाक चीखें, वीडियो में जाने ऐसे कई अनकहे रहस्य

राजस्थान की वीर भूमि चितौड़गढ़ अपनी गौरवशाली इतिहास, अनगिनत युद्धों और स्त्रियों के अद्भुत साहस के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक शहर की पहचान जिस एक स्मारक से सबसे अधिक जुड़ी हुई है, वह है — विजय स्तम्भ। महाराणा कुम्भा द्वारा 1448 में महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया यह स्मारक आज भी राजपूती शौर्य का प्रतीक बना हुआ है। लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, इस स्तम्भ के चारों ओर अजीब सी खामोशी और रहस्यमय सन्नाटा पसर जाता है।स्थानीय लोगों और सुरक्षाकर्मियों की मानें तो रात के समय इस जगह पर अजीब सी परछाइयाँ दिखाई देती हैं, और माना जाता है कि ये परछाइयाँ कोई और नहीं बल्कि चितौड़ की वीरांगनाओं की आत्माएं हैं, जो आज भी उस बलिदान भूमि की रक्षा में भटक रही हैं।
विजय स्तम्भ: जहां इतिहास बोलता है
चितौड़गढ़ किले के भीतर स्थित विजय स्तम्भ (Victory Tower) लगभग 122 फीट ऊँचा है, और इसमें 9 मंजिलें हैं। इसकी नक्काशी और शिल्पकला अद्वितीय है। यह स्तम्भ न केवल स्थापत्य का चमत्कार है, बल्कि यह उस समय के लोगों की वीरता और दृढ़ता की कहानी भी कहता है।यह स्तम्भ कई युद्धों और संघर्षों का साक्षी रहा है, लेकिन इसके आसपास की भूमि ने तीन बड़े जौहर भी देखे हैं — जिसमें हजारों स्त्रियों ने आक्रमणकारियों से बचने के लिए अग्नि कुंड में कूदकर बलिदान दे दिया। इन घटनाओं की पीड़ा और उस समय की चीत्कारों की गूंज आज भी लोगों को रात के समय यहां आने से रोक देती है।
परछाइयाँ जो केवल रात में दिखती हैं
कई स्थानीय गार्ड्स और इतिहासकारों का दावा है कि रात के समय विजय स्तम्भ के पास अनदेखी परछाइयाँ घूमती दिखाई देती हैं। वे स्त्रियों की धुंधली आकृतियाँ होती हैं, जिनके सिर पर घूंघट होता है और वे तेजी से स्तम्भ के चारों ओर घूमती नजर आती हैं।एक सुरक्षा गार्ड प्रहलाद सिंह कहते हैं, “रात में जब मैं किले के मुख्य द्वार पर तैनात होता हूँ, तो विजय स्तम्भ की ओर से घंटियों की आवाज आती है। कई बार स्त्री जैसी आकृति ऊपर-नीचे जाती दिखती है, जबकि वहां कोई नहीं होता।”
टूरिस्ट्स के अनुभव भी कम चौंकाने वाले नहीं
जयपुर से आए एक टूरिस्ट कपल राहुल और भावना ने बताया कि उन्होंने 2023 में अपने कैमरे से विजय स्तम्भ की कुछ तस्वीरें ली थीं। लेकिन जब उन्होंने रात को फोटो चेक की, तो एक फोटो में स्तम्भ की सीढ़ियों पर सफेद साड़ी में एक महिला की छाया दिखी — जबकि उस समय वहां कोई नहीं था।एक यूट्यूबर ने भी जब वहां देर शाम शूटिंग करने की कोशिश की, तो उसके ऑडियो रिकॉर्डर में एक धीमी स्त्री स्वर की कराहती हुई आवाज रिकॉर्ड हुई — “जौहर... जौहर...”।
क्या ये आत्माएं अब भी रक्षा कर रही हैं चितौड़ की?
ऐसी मान्यता है कि जौहर करने वाली रानियाँ और अन्य स्त्रियाँ मरकर भी चितौड़ को नहीं छोड़ पाईं। वे आज भी आत्मरूप में किले और विजय स्तम्भ के आसपास भटकती हैं — न किसी से डरती हैं, न किसी को डराने आती हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ अपनी भूमि की रक्षा करना है।कुछ लोग मानते हैं कि ये आत्माएं अन्य लोक में चैन नहीं पा सकीं, क्योंकि उनका बलिदान अधूरा रहा — ना तो उन्होंने युद्ध किया, ना ही उन्होंने जीवन को पूर्णता से जिया।
वैज्ञानिक क्या कहते हैं?
कुछ इतिहासकार और वैज्ञानिक इन घटनाओं को मनोवैज्ञानिक प्रभाव, थकान, ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और वातावरण में प्रतिध्वनि (Echo) का परिणाम मानते हैं।डॉ. नितिन शर्मा, एक मनोविज्ञानी, कहते हैं: “जब इंसान ऐसी जगह पर होता है जहां इतिहास, बलिदान और डर की कहानियाँ गहराई से जुड़ी हों, तो उसका अवचेतन मन खुद भी छवियाँ और आवाजें गढ़ने लगता है। यह एक मानसिक अनुभव है।”हालांकि, सवाल तब उठता है जब एक जैसे अनुभव कई लोगों को होते हैं — अलग-अलग समय और अलग-अलग परिस्थितियों में।
पर्यटन विभाग की सख्ती
राजस्थान पर्यटन विभाग ने स्पष्ट निर्देश दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद चितौड़गढ़ किला और विजय स्तम्भ क्षेत्र में कोई नहीं रुक सकता। यह नियम सुरक्षा के लिए है, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि यह आदेश सिर्फ खतरे से बचाव नहीं, बल्कि अनजाने डर से बचने का तरीका भी है।
निष्कर्ष: इतिहास की परछाइयों में सच्चाई कितनी?
चितौड़गढ़ का विजय स्तम्भ न केवल राजपूती गौरव का प्रतीक है, बल्कि यह उन वीरांगनाओं की गाथाओं का मौन साक्षी भी है जिनके लिए शौर्य सर्वोपरि था।रात के सन्नाटे में दिखने वाली परछाइयाँ, अनसुनी कराहें और रहस्यमयी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं, वह उन पत्थरों में भी जिंदा रहता है जहां बलिदान दिए गए।