राजस्थान का वो रहस्यमयी मंदिर जहां सूरज डूबता है तो बदल जाती है हवा और इंसान बन जाते है पत्थर, जाने सदियों पुराना डरावना रहस्य

राजस्थान की रेत में सिर्फ महल और किले ही नहीं, बल्कि अनगिनत रहस्यों और कथाओं की भी परतें छिपी हैं। इन्हीं में से एक रहस्यमयी जगह है किराडू मंदिर, जो बाड़मेर जिले के थार रेगिस्तान की गोद में बसा हुआ है। ऐतिहासिक और स्थापत्य दृष्टि से यह मंदिर जितना अद्भुत है, उतना ही रहस्य और भय से भरा भी है। कहा जाता है कि सूरज ढलते ही यहां इंसानों का रुकना मना है, और जो रुकता है, वह पत्थर बन जाता है।
इतिहास की परतों में छिपा रहस्य
किराडू मंदिर का इतिहास 11वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। इसे परमार वंश के राजाओं द्वारा बनवाया गया था, जो स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध थे। यहां कुल पाँच मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख है भगवान शिव को समर्पित मंदिर। इनकी वास्तुकला खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की याद दिलाती है – जटिल नक्काशी, सुंदर मूर्तियां और भव्य स्तंभ।लेकिन जितना यह मंदिर दिन में श्रद्धा और कला का प्रतीक लगता है, उतना ही रात में यह डर और रहस्य का केंद्र बन जाता है।
सूरज डूबते ही क्यों खाली हो जाता है मंदिर परिसर?
स्थानीय लोग आज भी मानते हैं कि सूरज ढलते ही इस मंदिर के चारों ओर की हवा बदल जाती है। जैसे ही शाम होती है, मंदिर और उसके आसपास का पूरा इलाका एक अजीब सन्नाटे में डूब जाता है। कोई भी स्थानीय व्यक्ति सूर्यास्त के बाद यहां रुकने की हिम्मत नहीं करता। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति जिज्ञासा में यहां रुकने की कोशिश करता है, वह कभी लौट कर नहीं आता – और अगली सुबह वहां एक नया पत्थर मिल जाता है।
क्या है पत्थर बनने की कहानी?
इस रहस्य से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है। कहा जाता है कि वर्षों पहले एक संत यहां आए थे और उन्होंने मंदिर में तपस्या की थी। उनके साथ आए शिष्य बीमार पड़ गए, लेकिन गांव वालों ने उनकी देखभाल नहीं की। संत ने क्रोधित होकर पूरे गांव को श्राप दे दिया कि “जो भी अब इस स्थान पर रात बिताएगा, वह पत्थर बन जाएगा।”इसके बाद से माना जाता है कि संत के श्राप के कारण आज तक कोई व्यक्ति रात में मंदिर के परिसर में ठहर नहीं पाया। इस रहस्य को लेकर कई बार शोधकर्ताओं और साहसी लोगों ने प्रयास किए, लेकिन रात बिताने का दावा करने वालों का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है?
कुछ लोग इस रहस्य को मानसिक डर और समाजिक भ्रांति मानते हैं। उनके अनुसार, रात के समय यहां जंगली जानवरों और रेगिस्तानी हवाओं के कारण डर का वातावरण बन जाता है। साथ ही, यहां बिजली और रोशनी की व्यवस्था ना होने के कारण लोग डरकर खुद ही मंदिर छोड़ देते हैं।हालांकि आज तक इस मान्यता को पूरी तरह से झुठलाया नहीं जा सका है। कोई ठोस वैज्ञानिक सबूत नहीं है जो इन कहानियों को साबित या खारिज कर सके, और यही बात इसे और भी रहस्यमयी बना देती है।
पर्यटन और रहस्य का मेल
किराडू मंदिर अब एक प्रमुख टूरिस्ट अट्रैक्शन बन चुका है, खासकर उन लोगों के लिए जो रहस्यमयी और ऐतिहासिक जगहों में रुचि रखते हैं। दिन के समय यहां पर्यटकों की अच्छी-खासी भीड़ रहती है, लेकिन जैसे ही शाम होती है, लोग खुद-ब-खुद वहां से रवाना हो जाते हैं।सरकार द्वारा भी इस क्षेत्र को संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन रात में मंदिर में प्रवेश अब भी प्रतिबंधित ही है – और शायद यह प्रतिबंध ही इस रहस्य को और मजबूत बनाता है।