भानगढ़ किले की रहस्यमयी वीरानी! क्या सच में तांत्रिक के श्राप से नहीं टिक पाती कोई छत? जानिए पूरी कहानी

भारत में कई ऐसी जगहें हैं जो अजीबोगरीब रहस्यों और भूत-प्रेत की कहानियों से घिरी हुई हैं। कुछ जगहों की कहानियां इतनी डरावनी होती हैं कि उन्हें नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होता है, फिर चाहे आप भूतों में यकीन करते हों या नहीं। आज हम आपको एक ऐसी ही भूतिया जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां लोग रात के अंधेरे में ही नहीं बल्कि दिन के उजाले में भी जाने से डरते हैं। हम बात कर रहे हैं जयपुर से 118 किलोमीटर दूर स्थित भानगढ़ किले की।
देश की सबसे भूतिया जगहों में से एक भानगढ़ किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में आमेर के मुगल कमांडर मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करवाया था। कभी हरियाली और लोगों की चहचहाट से गूंजने वाला यह किला आज पूरी तरह वीरान है। किले के परिसर में बनी हवेलियों, मंदिरों और वीरान बाजारों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि अंधेरे में यहां कई तरह की पैरानॉर्मल एक्टिविटीज होती हैं। इसके बावजूद लोग इस किले को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद कोई यहां रुकने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। हालांकि, दिन में भी इस किले में घूमते समय कई तरह के भ्रम होते हैं।
श्राप का असर...गिर जाती है छत
आश्चर्यजनक बात यह है कि किले में बने हर घर की संरचना पूरी है लेकिन उनमें से किसी की भी छत नहीं है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस किले को बालूनाथ का श्राप लगा है, जिसके कारण जब भी घरों की छत बनती है तो वह गिर जाती है। कहा जाता है कि महाराज माधो सिंह संत बालूनाथ के बहुत बड़े भक्त थे। बालूनाथ ने महाराज से एक गुफा बनवाने को कहा ताकि वे तपस्या कर सकें। इसके बाद महाराज ने तुरंत गुफा बनवा दी, जिसके बाद बालूनाथ तपस्या करने लगे।
लेकिन, महाराज और बालूनाथ के रिश्ते से कुछ पुजारियों को जलन होने लगी। उन्होंने एक साजिश रची और एक बिल्ली को मारकर गुफा में फेंक दिया। 2-3 दिन बाद गुफा से बदबू आने लगी। तब पुजारियों ने महाराज को बताया कि बालूनाथ ने गुफा में ही अपने प्राण त्याग दिए हैं। इससे महाराजा बहुत दुखी हुए। दुर्गंध के कारण उन्होंने बिना अंदर देखे ही गुफा को बंद कर दिया। उधर, तपस्या पूरी करने के बाद जब बालूनाथ ने बाहर निकलने का रास्ता बंद देखा तो क्रोधित होकर उन्होंने भानगढ़ को श्राप दे दिया। इसके बाद भानगढ़ पूरी तरह से नष्ट हो गया। जब महाराजा को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने किले के पीछे जंगलों में बालूनाथ की समाधि बनवा दी, जो आज भी वहीं स्थित है।